भूल जाओ ...




भूल जाओ ...

दुसरे के द्वारा तुम्हारा कभी कोई अनिष्ट हो जाय तो उसके लिये दुःख न करो; उसे अपने पहले किये हुए बुरे कर्म का फल समझो, यह विचार कभी मन में मत आने दो कि 'अमुकने मेरा अनिष्ट कर दिया है, यह निश्चय समझो कि ईश्वरके दरबार में अन्याय नहीं होता, तुम्हारा जो अनिष्ट हुआ है या तुम पर जो  विपत्ति आयी है, वह अवश्य ही तुम्हारे पूर्वकृत कर्म का फल है, वास्तवमें बिना कारण तुम्हे कोई कदापि कष्ट नहीं पहुँचा सकता ! न यही सम्भव है कि कार्य पहले हो और कारण पीछे बने, इसलिये तुम्हे जो कुछ भी दुःख प्राप्त होता है, सो अवश्य ही तुम्हारे अपने कर्मों का फल है; ईश्वर तो तुम्हे पापमुक्त करनेके लिये दयावश न्यायपूर्वक फल का विधान करता है ! जिसके द्वारा तुम्हे दुःख पहुँचा है उसे तो केवल निमित्त समझो; वह बेचारा अज्ञान और मोहवश निमित्त बन गया है; उसने तो अपने ही हाथों अपने पैरों में कुल्हाड़ी मारी है और तुम्हे कष्ट पहुँचानेमें निमित्त बनकर अपने लिये दु;खों को निमन्त्रण दिया है; यह तो समझते ही होंगे कि जो स्वयं दु:खो कों बुलाता है वह बुद्धिमान् नहीं है, भुला हुआ है; अतः वह दया का पात्र है ! उस पर क्रोध न करो, बदले में उसका बुरा न चाहो, कभी उसकी अनिष्टकामना न करो, बल्कि भगवान् से प्रार्थना करो कि हे भगवन् ! इस भूले हुए जीव को सन्मार्ग पर चढ़ा दो! इसकी सदबुद्धिको जाग्रत कर दो; इसका भ्रमवश किया हुआ अपराध क्षमा  करो ! 

॥ हे मेरे नाथ! तुम प्यारे लगो, तुम प्यारे लगो! ॥
॥ O' My Lord! May I find you lovable, May I find you lovable! ॥

भगवान शिव द्वारा प्रभु श्रीराम की स्तुति

*भगवान शिव द्वारा प्रभु श्रीराम की स्तुति *

जय राम रमारमनं समनं । भवताप भयाकुल पाहि जनं ।।
अवधेश सुरेश रमेश बिभो । सरनागत मागत पाहि प्रभो ॥1॥

दससीस बिनासन बीस भुजा । कृत दूरि महा महि भूरि रुजा ।।
रजनीचर बृंद पतंग रहे ।सर पावक तेज प्रचंड दहे ॥2॥

महि मंडल मंडन चारु तरं । धृत सायक चाप निषंग बरं ।।
मद मोह महा ममता रजनी । तम पुंज दिवाकर तेज अनी ॥3॥

मनजात किरात निपात किए । मृग लोग कुभोग सरेन हिए ।।
हति नाथ अनाथनि पाहि हरे । बिषया बन पावँर भूलि परे ॥4॥

बहुरोग बियोगन्हि लोग हए । भवदंघ्रि निरादर के फल ए ।।
भव सिँधु अगाध परे नर ते । पद पंकज प्रेम न जे करते ॥5॥

अति दीन मलीन दुखी नितही । जिन्हके पद पंकज प्रीति नहीँ ।।
अवलंब भवंत कथा जिन्ह केँ । प्रिय संत अनंत सदा तिन्हके ॥6॥

नही राग न लोभ न मान मदा । तिन्ह के सम वैभव वा बिपदा ।।
एहि ते तव सेवक होत मुदा । मुनि त्यागत जोग भरोस सदा ॥7॥

करि प्रेम निरंतर नेम लिएँ । पद पंकज सेवत सुद्ध हिएँ ।।
सम मानि निरादर आदरही । सब संत सुखी बिचरंति मही ॥8॥

मुनि मानस पंकज भृंग भजे । रघुबीर महा रनधीर अजे ।।
तव नाम जपामि नमामि हरी । भव रोग महागद मान अरी ॥9॥

गुन सील कृपा परमायतनं । प्रनमामि निरंतर श्रीरमनं ।।
रघुनंद निकंदय द्वंद्वघनं । महिपाल बिलोकय दीनजनं ॥10॥

दोहः-
बार बार बर मागहुँ हरषि देहु श्रीरंग । पद सरोज अनपायनी भगति सदा सतसंग ॥14 A॥
बरनी उमापति राम गुन हरषि गये कैलास । तब प्रभु कपिन्ह दिवाए सब बिधि सुख प्रद बास ॥14 B॥

"भजन"

भजन उसी को कहते हैं, जिसमें भगवान् का सेवन हो तथा सेवन भी वही श्रेष्ठ है, जो प्रेमपूर्वक मन से किया जाय | मन से प्रभु का सेवन तभी समुचितरूप से प्रेमपूर्वक होना संभव है, जब हमारा उनके साथ घनिष्ठ अपनापन हो और प्रभु से हमारा अपनापन तभी हो सकता है, जब संसार के अन्य पदार्थों से हमारा सम्बन्ध और अपनापन न हो |
॥ हे मेरे नाथ! तुम प्यारे लगो, तुम प्यारे लगो! ॥
॥ O' My Lord! May I find you lovable, May I find you lovable! ॥
 By Swami Ramsukhdasji...
 

भगवान को सब अर्पण कर दो...

अपना तन-मन-धन सब भगवान के अर्पण कर दो, तुम्हारा है भी नहीं, भगवान का ही है | अपना मान बैठे हो- ममता करते हो इसीसे दुखी होते हो | ममता को सब जगह से हटाकर केवल भगवान के चरणों में जोड़ दो, अपने माने हुए सब कुछ् को भगवान के अर्पण कर दो | फिर वे अपनी चीज को चाहे जैसे काम में लावें, बनावें या बिगाडें | तुम्हें उसमें व्यथा क्यों होने लगी? भगवान को समर्पण करके तुम तो निश्चिंत और आनंदमग्न हो जाओ |....

हे नाथ ! हे मेरे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं !!

  Ram Putra Angad Das
 

सन्त हृदय की करूण पुकार


हे हृदयेश्वर, हे सर्वेश्वर, हे प्राणेश्वर, हे परमेश्वर।
हे हृदयेश्वर, हे सर्वेश्वर, हे प्राणेश्वर, हे परमेश्वर।
हे हृदयेश्वर, हे सर्वेश्वर, हे प्राणेश्वर, हे परमेश्वर।
हे हृदयेश्वर, हे सर्वेश्वर, हे प्राणेश्वर, हे परमेश्वर।
हे हृदयेश्वर, हे सर्वेश्वर, हे प्राणेश्वर, हे परमेश्वर।
हे समर्थ हे करूणासागर विनती यह स्वीकार करो,
हे समर्थ हे करुणासागर विनती यह स्वीकार करो,
भूल दिखाकर उसे मिटाकर अपना प्रेम प्रदान करो।
भूल दिखाकर उसे मिटाकर अपना प्रेम प्रदान करो।
पीर हरो हरि पीर हरो हरि पीर हरो प्रभु पीर हरो।
पीर हरो हरि पीर हरो हरि पीर हरो प्रभु पीर हरो।


॥ हे मेरे नाथ! तुम प्यारे लगो, तुम प्यारे लगो! ॥
॥ O' My Lord! May I find you lovable, May I find you lovable! ॥

गुरु वंदना

* बंदउँ गुरु पद कंज कृपा सिंधु नररूप हरि।
महामोह तम पुंज जासु बचन रबि कर निकर॥5
भावार्थ:-मैं उन गुरु महाराज के चरणकमल की वंदना करता हूँ, जो कृपा के समुद्र और नर रूप में श्री हरि ही हैं और जिनके वचन महामोह रूपी घने अन्धकार का नाश करने के लिए सूर्य किरणों के समूह हैं॥5
चौपाई :
* बंदऊँ गुरु पद पदुम परागा। सुरुचि सुबास सरस अनुरागा॥
अमिअ मूरिमय चूरन चारू। समन सकल भव रुज परिवारू॥1
भावार्थ:-मैं गुरु महाराज के चरण कमलों की रज की वन्दना करता हूँ, जो सुरुचि (सुंदर स्वाद), सुगंध तथा अनुराग रूपी रस से पूर्ण है। वह अमर मूल (संजीवनी जड़ी) का सुंदर चूर्ण है, जो सम्पूर्ण भव रोगों के परिवार को नाश करने वाला है॥1
* सुकृति संभु तन बिमल बिभूती। मंजुल मंगल मोद प्रसूती॥
जन मन मंजु मुकुर मल हरनी। किएँ तिलक गुन गन बस करनी॥2
भावार्थ:-वह रज सुकृति (पुण्यवान्‌ पुरुष) रूपी शिवजी के शरीर पर सुशोभित निर्मल विभूति है और सुंदर कल्याण और आनन्द की जननी है, भक्त के मन रूपी सुंदर दर्पण के मैल को दूर करने वाली और तिलक करने से गुणों के समूह को वश में करने वाली है॥2
* श्री गुर पद नख मनि गन जोती। सुमिरत दिब्य दृष्टि हियँ होती॥
दलन मोह तम सो सप्रकासू। बड़े भाग उर आवइ जासू॥3
भावार्थ:-श्री गुरु महाराज के चरण-नखों की ज्योति मणियों के प्रकाश के समान है, जिसके स्मरण करते ही हृदय में दिव्य दृष्टि उत्पन्न हो जाती है। वह प्रकाश अज्ञान रूपी अन्धकार का नाश करने वाला है, वह जिसके हृदय में आ जाता है, उसके बड़े भाग्य हैं॥3
* उघरहिं बिमल बिलोचन ही के। मिटहिं दोष दुख भव रजनी के॥
सूझहिं राम चरित मनि मानिक। गुपुत प्रगट जहँ जो जेहि खानिक॥4
भावार्थ:-उसके हृदय में आते ही हृदय के निर्मल नेत्र खुल जाते हैं और संसार रूपी रात्रि के दोष-दुःख मिट जाते हैं एवं श्री रामचरित्र रूपी मणि और माणिक्य, गुप्त और प्रकट जहाँ जो जिस खान में है, सब दिखाई पड़ने लगते हैं-॥4
दोहा :
* जथा सुअंजन अंजि दृग साधक सिद्ध सुजान।
कौतुक देखत सैल बन भूतल भूरि निधान॥1
भावार्थ:-जैसे सिद्धांजन को नेत्रों में लगाकर साधक, सिद्ध और सुजान पर्वतों, वनों और पृथ्वी के अंदर कौतुक से ही बहुत सी खानें देखते हैं॥1
चौपाई :
* गुरु पद रज मृदु मंजुल अंजन। नयन अमिअ दृग दोष बिभंजन॥
तेहिं करि बिमल बिबेक बिलोचन। बरनउँ राम चरित भव मोचन॥1
भावार्थ:-श्री गुरु महाराज के चरणों की रज कोमल और सुंदर नयनामृत अंजन है, जो नेत्रों के दोषों का नाश करने वाला है। उस अंजन से विवेक रूपी नेत्रों को निर्मल करके मैं संसाररूपी बंधन से छुड़ाने वाले श्री रामचरित्र का वर्णन करता हूँ॥

हे नाथ ! हे मेरे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं !!

"चित्रा सखी"

राधाजी की अष्ट सखिओं में एक सखी हैं, चित्रा सखी बरसाने की बड़ी परिकर्मा मार्ग में चिक्सोली गाँव में इनका मंदिर है | चित्रा सखी बचपन से योगिनी वेदान्त की ज्ञाता थी और साथ ही एक बहुत अच्छी चित्रकार थीं किसी को भी एक बार देखकर उसका चित्र बना लेना उनके लिए बहुत ही सरल बात थी इसी बात की उनकी ख्याति भी थी दूर दूर के गाँव तक थी | एक बार राधाजी के भाई श्री दामा ने अपने मित्र कन्हैया से उनका चित्र माँगा | कन्हैया ने कह दिया कल दे दूंगा और अपने घर आकर मैया से कहने लगे की माँ मेरा चित्र बनवा दो | माँ ने कह दिया की बनवा देंगे और अपने काम में लग गयी थोड़ी देर में फिर आकर बोले मैया बनवा दो ना माँ ने झुंझला के कहा क्यों जिद कर रहा है बनवा देंगे अभी कहाँ से बनवा दूँ | इतने में नन्द बावा आ गए वो बावा के पीछे लग गए कहने लगा बावा मुझे अपना चित्र बनवाना है | बावा ने कहा- अच्छा ! चल बनवाते हैं, बाहर आकर अपने किसी सहयोगी से कहा कि जाकर किसी चित्र बनाने वाले को लेकर आयो | सहयोगी ने कहा -कि अच्छा लाता हूँ | वो ढूंढते ढूंढते चित्रा सखी के पास पहुँच गया और उससे बोला हमें नन्द बाबा ने भेजा है उनको अपने लाला कि तस्वीर बनवानी है. वो बोली तो लाला को यहाँ ले आओ मैं तो कहीं जाती नहीं | सहयोगी ने कहा - कि हम तुम्हे बाबा से बहुत सा इनाम दिलवाएंगे तुम्हे वहीँ चलना पड़ेगा | इस बात से वो नाराज़ हो गयी बोली हम इनाम के लिए तस्वीर नहीं बनाते हैं, बस तस्वीर बना के हमारे मन को सुकून मिलता है इसलिए बनाते हैं. पर ठाकुरजी के कुछ प्रेरणा ऐसी हुई वो ना ना करते हुए चलने के लिए तैयार हो गयी | और जब नन्द गाँव पहुंची तो लाला को देखा और उस रूप को देखती ही रह गयी उस योगिनी को अपना योग हिलता सा लगा वो उस रूप पर मोहित हो गयी | बाबा से बोली हम कल बना कर दे देंगे और वहाँ से आ गयी | अब वो जो चित्र बनाएं उस रूप के आगे वो उन्हें फीका लगे फिर मिटा दें फिर बनाएं पर चित्र बने ही नहीं. वो चंचल चितवन उनके मन पर टिक ही नहीं रही थी. बार-बार बदल जाती थी और चित्र उन्हें दूसरा लगने लगता था | जब बहुत परेशान हुई तो उन्होंने ध्यान लगाने की कोशिश की अब ध्यान भी नहीं लग रहा उनकी परेशानी को नारद जी बड़ी देर से देख रहे थे | वो उनके नज़दीक आये और बोले पुत्री क्यों परेशान हो तो चित्रा सखी ने अपने परेशानी बतायी | और देवर्षि से उसका समाधान पूछा | तो नारद जी ने कहा -कि कान्हा का चित्र श्री जी की साधना किये बिना नहीं बन सकता तुम उनकी आराधना करो और जब वो तुम्हे आशीर्वाद देंगी तभी तुम उनका चित्र बना सकती हो तभी कान्हा की चंचल चितवन तुम्हारे मन में ठहर पाएगी | और चित्रा जी ने राधा जी को आरधना से प्रसन्न किया और उनसे चित्र बनाए की सामर्थ मांगी | श्रीजी ने उनकी साधना से प्रसन्न होकर उन्हें अपनी अष्ट सखी में शामिल किया और उन्हें ठाकुरजी का चित्र बनाने का आशीर्वाद प्रदान किया | तब जाकर चित्रा सखी ठाकुरजी का चित्र बना सकीं |
"जय जय श्री राधे श्याम "

हे नाथ ! हे मेरे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं !!

 

Spiritual condition of Bhaiji (what Radha baba and Ramsukhadasji wrote)

The spiritual condition of Bhaiji was very secret . No body including his very close like radha baba never disclosed because Bhaiji was not interested in revealing his spiritual condition to any one. He always behaved like religious marwari , but the people who were very close knew his highest spiritual attainment. Radha baba wrote that the condition of Bhaiji is just like chaitanya Mahaprabhu and his spiritual self is totally turned into Radha Rani , the beloved of Lord Krishna .This was considered the highest attainment in Bhakti ,but Bhaiji simply belied this by saying in Marwari*Matho Kharab Ho gayo*. It was like a jagrat Samadhi of highest attainment.
After the death of Bhaiji Shri Hanuman Prasadji poddar the letters written by saint Radha baba and Ram sukha dasji Maharaj are printed which are quoted below

Image of Setha Jaya Dayalji Goyanka, Shri Hanuman Prasadji Poddar(Bhaiji) and Radha baba of Gorakhpur.
original writing of Radha baba about spiritual condition of Bhaiji


href=”http://hanumanprasadjipoddar.files.wordpress.com/2011/04/9.jpg”>




Bhaiji wrote a letter to Shri Sampoornanandji
Bhaiji ke Jeewan me Bhagwan Ki satta par Atoot vishwas

श्री कृष्ण को जीवन का लक्ष्य बनाये

हरे कृष्णा

हम अपने जीवन का विश्लेषण करके देखे - आज तक सुख पाने का सतत प्रयास जाने में, अनजाने में हमने किया है, पर क्या हम सुखी हो गए ?
आजीवन सुख के लिए निरंतर प्रयतन करते रहने पर भी, आजीवन सुख की चाह पोषित रख कर भी, आज अनेक वर्षो तक सत्संग - भजन करके भी हम सुखी नहीं हो सके हैं, ऐसा क्यों?
सच्चे ह्रदय से अगर हम पूछेंगे तो हमको यह स्पष्ट दिखेगा कि श्री कृष्ण हमारे लिए लक्ष्य बने ही नहीं| हमारा लक्ष्य सुख पाना है और उसका माध्यम है श्री कृष्ण| हम श्री कृष्ण से सुख की कामना करते है, श्री कृष्ण की कामना नहीं करते|
श्री कृष्ण की प्राप्ति होने पर सुख हमेशा के लिए प्राप्त हो जायेगा|
अभी तक तो सुख प्राप्ति ही हमारा लक्ष्य है, श्री कृष्ण तो अभी हमारे लक्ष्य बने ही नहीं|

हरे कृष्णा

श्री गुरुदेव (देवऋषि नारद जी) जयंती महामहोत्सव


 !! हरे कृष्णा !!

देवऋषि नारद जी परम भागवत प्रह्लाद , महाराज ध्रुव , वाल्मीकि ऋषि आदि कई महान संतो के गुरु जी है, वे भक्ति के परम आचार्य है, चारो वैष्णव सम्प्रदायों के प्रधान गुरु है, उन्ही देव ऋषि नारद जी की जयंती इस वर्ष 22 May 2011 को है|

हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी देवऋषि नारद जी की जयंती " श्रीमन नारदीय भगवत निकुंज " द्वारा गठबंधन बैंकेट हॉल में मनाई जाएगी| आप सभी से अनुरोध है की परिवार सहित पधार कर देवऋषि नारद जी के आशीर्वाद के रूप में भक्ति प्राप्त करे और इस जीवन के परम लक्ष्य श्री भगवान के दर्शन प्राप्त करे|


!! हरे कृष्णा !!


*जयंती स्थल*

गठबंधन बैंकेट हॉल
Near S. M. World
शालीमार गार्डन, साहिबाबाद
गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश

Contact :-
Krishna Prabhu :09999801087
Hanuman Ji :09953520420
Rasbihari Prabhu :09899499528

हर परिस्थिति में भगवान के मंगलमय विधान को देखना...

!! हरे कृष्णा !!

हम यह अनुभव करने की चेष्टा करें, सारी शक्ति लगाकर विश्वास करे की जो भी परिस्थिति भगवान की ओर से हमारे सामने रखी जा रही है, उसके कण - कण मैं लौकिक - पारलौकिक हमारा मंगल ही मंगल हैं| हमारे लिए जो अत्यंत आवश्यक परिस्थिति है, भगवान के द्वारा उसी का निर्माण किया गया है| भगवान अपरिसीम करुणामय है| उन्हें ठीक पूरा पता है कि हमारे लिए कौन - कौन - सी परिस्थिति होनी चाहिए और यह सब सोच समझ कर ही सारी परिस्थितियों का निर्माण भगवान ने किया है| इसलिए जो परिस्थिति आये, उसका हम स्वागत करे| यही प्रत्येक परिस्थिति में भगवान के मंगलमय विधान को देखना है |

!! हरे कृष्णा !!

सब कुछ व्यावहारिक कार्य करते हुए भी परमात्मा का...

सब कुछ व्यावहारिक कार्य करते हुए भी परमात्मा का स्मरण करते रहो जिसमें भगवान के भजन की ही जीवन में प्रधानता रहे।
भगवान का भजन सदा करते रहोगे तो अन्त समय में भी भगवान का ही स्मरण होगा और भगवान का कहना है कि -
अन्तोकाले च मामेव
समरन्मुक्त्वा कलेवरम्।
यः प्रयाति त्यजन्देहं
स याति परमां गतिम्॥
जिसको आप बुलाते हैं वह समीप में आता ही है। यदि भगवान को बुलाओगे तो ऐसा नहीं हो सकता कि वह न आयें।...

: हरे कृष्णा :


*...हनुमान जयंती...*


ॐ हनुमते नमः

जयति मंगलागार, संसारभारापहर, वानराकारविग्रह पुरारी ।

राम - रोषानल - ज्वालमाला - मिष ध्वांतचर - सलभ - संहारकारी ॥

जयति मरुदंजनामोद - मंदिर, नतग्रीव सुग्रीव - दुःखैकबंधो ।

यातुधानोद्धत - क्रुद्ध - कालाग्निहर, सिद्ध - सुर - सज्जनानंद - सिंधो ॥

जयति रुद्राग्रणी, विश्व - वंद्याग्रणी, विश्वविख्यात - भट - चक्रवर्ती ।

सामगाताग्रणी, कामजेताग्रणी, रामहित, रामभक्तानुवर्ती ॥

जयति संग्रामजय, रामसंदेसहर, कौशला - कुशल - कल्याणभाषी ।

राम - विरहार्क - संतप्त - भरतादि - नरनारि - शीतलकरण कल्पशाषी ॥

जयति सिंहासनासीन सीतारमण, निरखि, निर्भरहरष नृत्यकारी ।

राम संभ्राज शोभा - सहित सर्वदा तुलसिमानस - रामपुर - विहारी ॥

हे हनुमानजी ! तुम्हारी जय हो । तुम कल्याणके स्थान, संसारज्के भारको हरनेवाले, बन्दरके आकारमें साक्षात् शिवस्वरुप हो । तुम राक्षसरुपी पतंगोंको भस्म करनेवाली श्रीरामचन्द्रजीके क्रोधरुपी अग्निकी ज्वालामालाके मूर्तिमान् स्वरुप हो ॥

तुम्हारी जय हो । तुम पवन और अंजनी देवीके आनन्दके स्थान हो । नीची गर्दन किये हुए, दुःखी सुग्रीवके दुःखमें तुम सच्चे बन्धुके समान सहायक हुए थे । तुम राक्षसोंके कराल क्रोधरुपी प्रलयकालकी अग्निका नाश करनेवाले और सिद्ध, देवता तथा सज्जनोंके लिये आनन्दके समुद्र हो ॥

तुम्हारी जय हो । तुम एकादश रुद्रोंमें और जगत्पूज्य ज्ञानियोंमें अग्रगण्य हो, संसारभरके शूरवीरोंके प्रसिद्ध सम्राट हो । तुम सामवेदका गान करनेवालोंमें और कामदेवको जीतनेवालोंमें सबसे श्रेष्ठ हो । तुम श्रीरामजीके हितकारी और श्रीराम - भक्तोंके साथ रहनेवाले रक्षक हो ॥

तुम्हारी जय हो । तुम संग्राममें विजय पानेवाले, श्रीरामजीका सन्देशा ( सीताजीके पास ) पहुँचानेवाले और अयोध्याका कुशल - मंगल ( श्रीरघुनाथजीसे ) कहनेवाले हो । तुम श्रीरामजीके वियोगरुपी सूर्यसे जलते हुए भरत आदि अयोध्यावासी नर - नारियोंका ताप मिटानेके लिये कल्पवृक्ष हो ॥

तुम्हारी जय हो । तुम श्रीरामजीको राज्य - सिंहासनपर विराजमान देख, आनन्दमें विह्वल होकर नाचनेवाले हो । जैसे श्रीरामजी अयोध्यामें सिंहासनपर विराजित हो शोभा पा रहे थे, वैसे ही तुम इस तुलसीदासकी मानसरुपी अयोध्यामें सदा विहार करते रहो ॥

आपको हनुमान जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं

!!सीताराम !!
हे नाथ ! हे मेरे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं !! O My Lord! Let me never forget you!! In seeking pleasure for ourselves, we gain pleasure that perishes, and on making others happy, we enjoy perpetual pleasure. Whatever pleasure we gain by detachment from the world, could never be gained by our attachment to it.

गोस्वामी तुलसीदास - कवितावली

को भरिहे हरिके रितएं , रितवे पुनि को , हरि जौं भरिहे !
उथपे तेहि को , जेहि रामु थपे , थपिहे तेहि को , हरि जो टारिहे
तुलसी यहु जानि हियें अपने सपने नहीं कालहु तें डरिहे!
कुमया कछु हानि न औरनकी , जो पे जानकी-नाथू मया करिहे !!

जिसको भगवान् ने खाली कर दिया , उसे कौन भर सकता है और जिसे भगवान् भर देंगे उसे कौन खाली कर सकता है ! जिसे श्रीरामचन्द्रजी स्थापित कर देंगे , उसे कौन उखाड़ सकता है और जिसे वह उखाड़ेंगे उसे कौन स्थापित कर सकता है तुलसीदास अपने हृदयमें यह जानकर स्वप्नमें भी कालसे नहीं डरेगा क्योंकि यदि जानकीनाथ श्रीरामचन्द्र कृपा करेंगे तो औरो की अकृपा से कुछ भी हानि नहीं होगी !


जय श्री राधेश्याम
जय श्री सीताराम

भगवान नहीं मिलने का कारण

हरे कृष्णा

जिस व्यक्ति की जरूरतें बहुत ज्यादा होती हैं , वह कभी भजन नहीं कर सकता|
वह संसार पर समय लगता है और भगवान को दोष लगता है कि वह सुलभ नहीं, दुर्लभ हैं|

कृष्णा प्रभु

* * श्रीराम स्तुति * *

रामचरितमानस के अरण्यकांड में जब श्रीराम ऋषि अत्रि के आश्रम पहुंचे, तब ऋषि अत्रि ने श्रीराम का आदरपूर्वक पूजन किया। श्रीराम आसन पर विराजमान है और ऋषि अत्रि उनकी स्तुति कर रहे हैं। यह भगवान् श्रीराम की सर्वाधिक प्रचलित स्तुतियों में से एक है।

श्रीराम स्तुति...
नमामि भक्त वत्सलं। कृपालु शील कोमलं।
भजामि ते पदांबुजं। अकामिनां स्वधामदं।।
निकाम श्याम सुंदरं। भवांबुनाथ मंदरं।
प्रफुल्ल कंज लोचनं। मदादि दोष मोचनं।।
प्रलंब बाहु विक्रमं प्रभोऽप्रमेय वैभवं।
निषंग चाप सायकं। धरं त्रिलोक नायकं।।
दिनेश वंश मंडनं। महेश चाप खंडनं।
मुनींद्र संत रंजनं। सुरारि वृंद भंजनं।।
मनोज वैरि वंदितं। अजादि देव सेवितं।
विशुद्ध बोध विग्रहं। समस्त दूषणापहं।।
नमामि इंदिरा पतिं। सुखाकरं सतां गतिं।
भजे सशक्ति सानुजं। शची पति प्रियानुजं।।
त्वदंघ्रि मूल ये नरा:। भजंति हीन मत्सरा:।
पतंति नो भवार्णवे। वितर्क वीचि संकुले।।
विविक्त वासिन: सदा। भजंति मुक्तये मुदा।
निरस्य इंद्रियादिकं। प्रयांति ते गतिं स्वकं।
तमेकमद्भुतं प्रभुं। निरीहमीश्वरं विभुं।
जगद्गुरुं च शाश्वतं। तुरीयमेव केवलं।।
भजामि भाव वल्लभं। कुयोगिनां सुदुर्लभं।
स्वभक्त कल्प पादपं। समं सुसेव्यमन्वहं।।
अनूप रूप भूपतिं। नतोऽहमुर्विजा पतिं।
प्रसीद मे नमामि ते। पदाब्ज भक्ति देहि मे।।
पठंति ये स्तवं इदं। नरादरेण ते पदं।
व्रजंति नात्र संशयं। त्वदीय भक्ति संयुता:।।

जय श्री सीताराम 

+ आश्चर्य +

हरे कृष्ण

जब यक्ष ने धर्मराज से पूछा की सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है? तो धर्मराज ने कहा की लोग नित्य मृत्यु को प्राप्त होते है फिर भी जो जीवित है वो सोचेते है की हम नहीं मरेंगे इससे बड़ा कोई आश्चर्य नहीं है | ऐसा ही एक और आश्चर्य हमारे संतो ने भी देखा है और वो ये है की जैसे कोई समुंदरी जहाज किनारे पहुँच कर डूब जाये और आपको ये पता लगे की उस जहाज के यात्रियों को इस बात का पता भी था और वो बच भी सकते थे | तो आपको बहुत हैरानी होगी | हमारे संतो को भी ऐसी ही हैरानी होती है और वे कहते है कि ये मनुष्य शरीर ही वो जहाज है जो इस 84 लाख योनियों को पर कर के भवसागर के किनारे पहुँच चुका है, प्रभु प्राप्ति बिना मर जाना ही इसे डुबो देना है |




हमे इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि हमारा जहाज डूबे इस से पहले हमे भगवत प्राप्ति कर लेनी है |

हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे |
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ||

* * * * धोखा * * * *

हरे कृष्ण,

धोखा कितना बुरा लगता है पर हम नहीं जानते की हम हमेशा से धोखे मैं ही रहते हैं| जैसे किसी कि चिता को अग्नि देने के बाद हम सोचते है कि इसका तो समय हो गया था मेरा समय अभी नहीं आया या मैं थोड़े ही मरूँगा | कुछ लोग तो इतने व्यस्त होते हैं कि उन्हें इस तरफ सोचने का वक्त नहीं मिलता | कोई उन्हें कहता भी है कि भाई भजन करो इस मनुष्य शरीर का कोई भरोसा नहीं, तो वो सोचते है कि कितना अपशकुनी है मरने कि बाते करता है, और वो उस व्यक्ति को टालने के लिए उससे पीछा छुड़ा लेते है|

पर उनको ये नहीं पता कि वो व्यक्ति ठीक कह रहा है| हम जिस शरीर से इतना प्यार करते हैं एक दिन वो ही प्यारा शरीर हमे धोखा दे देगा | हम जिस से प्यार करते है वो हमे एक दिन धोखा देगा और पता नहीं किस नयी दुनिया में चला जायेगा | हम जिस संसार को अपना मान लेते हैं, एक दिन हमे उसको छोड़ना पड़ेगा |

असल में हमे धोखा देने और धोखा खाने कि आदत पड़ गयी है | तभी तो हम जिस शरीर से प्यार करते है उससे धोखा खाते है और जो परमात्मा हमसे प्यार करता है उसको धोखा देते है | हम सभी जानते है कि उससे प्यार करना चाहिए जो हमे प्यार करता हो फिर भी हम धोखा करते है |

आज से ये समझ ले कि ये संसार हमे धोखा देगा तो इस धोखे से बचे और अपने से प्यार करने वाले परमात्मा के साथ इमानदार बने और उन्हें प्यार करे | इसलिए न तो धोखा दे और न तो धोखा खाए
और अपने प्रिय साथियों को भी इस धोखे से बचाए|


"हरे कृष्णा"

हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे

भजन न करने की बहानेबाजी

हरे कृष्ण
कुछ लोग कहते हैं कि हम भजन इसलिए नहीं करते हैं क्योंकि भगवान ने भजन करना हमारे भाग्य में ही नहीं लिखा|
उनसे पूछा जाये - तो फिर धन कमाने की कोशिश क्यों करते हो? क्या उसका मिलना आपके भाग्य में लिखा है?
आपने अपना भाग्य किस पुस्तक में देखा है|

ये सब बातें केवल भजन न करने की बहानेबाजी है|

जिस प्रकार धन कमाने के लिए हम मेहनत करते है तो उसका प्रतिफल हमे प्राप्त होता है, उसी प्रकार यदि हम भगवान का भजन करते हैं तो उसके फल स्वरुप हमे भगवान की प्राप्ति हो जाती है|

तो इस लिए हमे प्राप्त समय का सदुपयोग करना चाहिए, अर्थात भगवान का भजन करना चाहिए|

हरे कृष्ण

Narad krishn priya das