भजन उसी को कहते हैं, जिसमें भगवान् का सेवन हो तथा सेवन भी वही श्रेष्ठ है, जो प्रेमपूर्वक मन से किया जाय | मन से प्रभु का सेवन तभी समुचितरूप से प्रेमपूर्वक होना संभव है, जब हमारा उनके साथ घनिष्ठ अपनापन हो और प्रभु से हमारा अपनापन तभी हो सकता है, जब संसार के अन्य पदार्थों से हमारा सम्बन्ध और अपनापन न हो |
॥ हे मेरे नाथ! तुम प्यारे लगो, तुम प्यारे लगो! ॥
॥ O' My Lord! May I find you lovable, May I find you lovable! ॥