गोस्वामी तुलसीदास - कवितावली

को भरिहे हरिके रितएं , रितवे पुनि को , हरि जौं भरिहे !
उथपे तेहि को , जेहि रामु थपे , थपिहे तेहि को , हरि जो टारिहे
तुलसी यहु जानि हियें अपने सपने नहीं कालहु तें डरिहे!
कुमया कछु हानि न औरनकी , जो पे जानकी-नाथू मया करिहे !!

जिसको भगवान् ने खाली कर दिया , उसे कौन भर सकता है और जिसे भगवान् भर देंगे उसे कौन खाली कर सकता है ! जिसे श्रीरामचन्द्रजी स्थापित कर देंगे , उसे कौन उखाड़ सकता है और जिसे वह उखाड़ेंगे उसे कौन स्थापित कर सकता है तुलसीदास अपने हृदयमें यह जानकर स्वप्नमें भी कालसे नहीं डरेगा क्योंकि यदि जानकीनाथ श्रीरामचन्द्र कृपा करेंगे तो औरो की अकृपा से कुछ भी हानि नहीं होगी !


जय श्री राधेश्याम
जय श्री सीताराम