सन्त हृदय की करूण पुकार


हे हृदयेश्वर, हे सर्वेश्वर, हे प्राणेश्वर, हे परमेश्वर।
हे हृदयेश्वर, हे सर्वेश्वर, हे प्राणेश्वर, हे परमेश्वर।
हे हृदयेश्वर, हे सर्वेश्वर, हे प्राणेश्वर, हे परमेश्वर।
हे हृदयेश्वर, हे सर्वेश्वर, हे प्राणेश्वर, हे परमेश्वर।
हे हृदयेश्वर, हे सर्वेश्वर, हे प्राणेश्वर, हे परमेश्वर।
हे समर्थ हे करूणासागर विनती यह स्वीकार करो,
हे समर्थ हे करुणासागर विनती यह स्वीकार करो,
भूल दिखाकर उसे मिटाकर अपना प्रेम प्रदान करो।
भूल दिखाकर उसे मिटाकर अपना प्रेम प्रदान करो।
पीर हरो हरि पीर हरो हरि पीर हरो प्रभु पीर हरो।
पीर हरो हरि पीर हरो हरि पीर हरो प्रभु पीर हरो।


॥ हे मेरे नाथ! तुम प्यारे लगो, तुम प्यारे लगो! ॥
॥ O' My Lord! May I find you lovable, May I find you lovable! ॥

गुरु वंदना

* बंदउँ गुरु पद कंज कृपा सिंधु नररूप हरि।
महामोह तम पुंज जासु बचन रबि कर निकर॥5
भावार्थ:-मैं उन गुरु महाराज के चरणकमल की वंदना करता हूँ, जो कृपा के समुद्र और नर रूप में श्री हरि ही हैं और जिनके वचन महामोह रूपी घने अन्धकार का नाश करने के लिए सूर्य किरणों के समूह हैं॥5
चौपाई :
* बंदऊँ गुरु पद पदुम परागा। सुरुचि सुबास सरस अनुरागा॥
अमिअ मूरिमय चूरन चारू। समन सकल भव रुज परिवारू॥1
भावार्थ:-मैं गुरु महाराज के चरण कमलों की रज की वन्दना करता हूँ, जो सुरुचि (सुंदर स्वाद), सुगंध तथा अनुराग रूपी रस से पूर्ण है। वह अमर मूल (संजीवनी जड़ी) का सुंदर चूर्ण है, जो सम्पूर्ण भव रोगों के परिवार को नाश करने वाला है॥1
* सुकृति संभु तन बिमल बिभूती। मंजुल मंगल मोद प्रसूती॥
जन मन मंजु मुकुर मल हरनी। किएँ तिलक गुन गन बस करनी॥2
भावार्थ:-वह रज सुकृति (पुण्यवान्‌ पुरुष) रूपी शिवजी के शरीर पर सुशोभित निर्मल विभूति है और सुंदर कल्याण और आनन्द की जननी है, भक्त के मन रूपी सुंदर दर्पण के मैल को दूर करने वाली और तिलक करने से गुणों के समूह को वश में करने वाली है॥2
* श्री गुर पद नख मनि गन जोती। सुमिरत दिब्य दृष्टि हियँ होती॥
दलन मोह तम सो सप्रकासू। बड़े भाग उर आवइ जासू॥3
भावार्थ:-श्री गुरु महाराज के चरण-नखों की ज्योति मणियों के प्रकाश के समान है, जिसके स्मरण करते ही हृदय में दिव्य दृष्टि उत्पन्न हो जाती है। वह प्रकाश अज्ञान रूपी अन्धकार का नाश करने वाला है, वह जिसके हृदय में आ जाता है, उसके बड़े भाग्य हैं॥3
* उघरहिं बिमल बिलोचन ही के। मिटहिं दोष दुख भव रजनी के॥
सूझहिं राम चरित मनि मानिक। गुपुत प्रगट जहँ जो जेहि खानिक॥4
भावार्थ:-उसके हृदय में आते ही हृदय के निर्मल नेत्र खुल जाते हैं और संसार रूपी रात्रि के दोष-दुःख मिट जाते हैं एवं श्री रामचरित्र रूपी मणि और माणिक्य, गुप्त और प्रकट जहाँ जो जिस खान में है, सब दिखाई पड़ने लगते हैं-॥4
दोहा :
* जथा सुअंजन अंजि दृग साधक सिद्ध सुजान।
कौतुक देखत सैल बन भूतल भूरि निधान॥1
भावार्थ:-जैसे सिद्धांजन को नेत्रों में लगाकर साधक, सिद्ध और सुजान पर्वतों, वनों और पृथ्वी के अंदर कौतुक से ही बहुत सी खानें देखते हैं॥1
चौपाई :
* गुरु पद रज मृदु मंजुल अंजन। नयन अमिअ दृग दोष बिभंजन॥
तेहिं करि बिमल बिबेक बिलोचन। बरनउँ राम चरित भव मोचन॥1
भावार्थ:-श्री गुरु महाराज के चरणों की रज कोमल और सुंदर नयनामृत अंजन है, जो नेत्रों के दोषों का नाश करने वाला है। उस अंजन से विवेक रूपी नेत्रों को निर्मल करके मैं संसाररूपी बंधन से छुड़ाने वाले श्री रामचरित्र का वर्णन करता हूँ॥

हे नाथ ! हे मेरे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं !!

"चित्रा सखी"

राधाजी की अष्ट सखिओं में एक सखी हैं, चित्रा सखी बरसाने की बड़ी परिकर्मा मार्ग में चिक्सोली गाँव में इनका मंदिर है | चित्रा सखी बचपन से योगिनी वेदान्त की ज्ञाता थी और साथ ही एक बहुत अच्छी चित्रकार थीं किसी को भी एक बार देखकर उसका चित्र बना लेना उनके लिए बहुत ही सरल बात थी इसी बात की उनकी ख्याति भी थी दूर दूर के गाँव तक थी | एक बार राधाजी के भाई श्री दामा ने अपने मित्र कन्हैया से उनका चित्र माँगा | कन्हैया ने कह दिया कल दे दूंगा और अपने घर आकर मैया से कहने लगे की माँ मेरा चित्र बनवा दो | माँ ने कह दिया की बनवा देंगे और अपने काम में लग गयी थोड़ी देर में फिर आकर बोले मैया बनवा दो ना माँ ने झुंझला के कहा क्यों जिद कर रहा है बनवा देंगे अभी कहाँ से बनवा दूँ | इतने में नन्द बावा आ गए वो बावा के पीछे लग गए कहने लगा बावा मुझे अपना चित्र बनवाना है | बावा ने कहा- अच्छा ! चल बनवाते हैं, बाहर आकर अपने किसी सहयोगी से कहा कि जाकर किसी चित्र बनाने वाले को लेकर आयो | सहयोगी ने कहा -कि अच्छा लाता हूँ | वो ढूंढते ढूंढते चित्रा सखी के पास पहुँच गया और उससे बोला हमें नन्द बाबा ने भेजा है उनको अपने लाला कि तस्वीर बनवानी है. वो बोली तो लाला को यहाँ ले आओ मैं तो कहीं जाती नहीं | सहयोगी ने कहा - कि हम तुम्हे बाबा से बहुत सा इनाम दिलवाएंगे तुम्हे वहीँ चलना पड़ेगा | इस बात से वो नाराज़ हो गयी बोली हम इनाम के लिए तस्वीर नहीं बनाते हैं, बस तस्वीर बना के हमारे मन को सुकून मिलता है इसलिए बनाते हैं. पर ठाकुरजी के कुछ प्रेरणा ऐसी हुई वो ना ना करते हुए चलने के लिए तैयार हो गयी | और जब नन्द गाँव पहुंची तो लाला को देखा और उस रूप को देखती ही रह गयी उस योगिनी को अपना योग हिलता सा लगा वो उस रूप पर मोहित हो गयी | बाबा से बोली हम कल बना कर दे देंगे और वहाँ से आ गयी | अब वो जो चित्र बनाएं उस रूप के आगे वो उन्हें फीका लगे फिर मिटा दें फिर बनाएं पर चित्र बने ही नहीं. वो चंचल चितवन उनके मन पर टिक ही नहीं रही थी. बार-बार बदल जाती थी और चित्र उन्हें दूसरा लगने लगता था | जब बहुत परेशान हुई तो उन्होंने ध्यान लगाने की कोशिश की अब ध्यान भी नहीं लग रहा उनकी परेशानी को नारद जी बड़ी देर से देख रहे थे | वो उनके नज़दीक आये और बोले पुत्री क्यों परेशान हो तो चित्रा सखी ने अपने परेशानी बतायी | और देवर्षि से उसका समाधान पूछा | तो नारद जी ने कहा -कि कान्हा का चित्र श्री जी की साधना किये बिना नहीं बन सकता तुम उनकी आराधना करो और जब वो तुम्हे आशीर्वाद देंगी तभी तुम उनका चित्र बना सकती हो तभी कान्हा की चंचल चितवन तुम्हारे मन में ठहर पाएगी | और चित्रा जी ने राधा जी को आरधना से प्रसन्न किया और उनसे चित्र बनाए की सामर्थ मांगी | श्रीजी ने उनकी साधना से प्रसन्न होकर उन्हें अपनी अष्ट सखी में शामिल किया और उन्हें ठाकुरजी का चित्र बनाने का आशीर्वाद प्रदान किया | तब जाकर चित्रा सखी ठाकुरजी का चित्र बना सकीं |
"जय जय श्री राधे श्याम "

हे नाथ ! हे मेरे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं !!