*...हनुमान जयंती...*


ॐ हनुमते नमः

जयति मंगलागार, संसारभारापहर, वानराकारविग्रह पुरारी ।

राम - रोषानल - ज्वालमाला - मिष ध्वांतचर - सलभ - संहारकारी ॥

जयति मरुदंजनामोद - मंदिर, नतग्रीव सुग्रीव - दुःखैकबंधो ।

यातुधानोद्धत - क्रुद्ध - कालाग्निहर, सिद्ध - सुर - सज्जनानंद - सिंधो ॥

जयति रुद्राग्रणी, विश्व - वंद्याग्रणी, विश्वविख्यात - भट - चक्रवर्ती ।

सामगाताग्रणी, कामजेताग्रणी, रामहित, रामभक्तानुवर्ती ॥

जयति संग्रामजय, रामसंदेसहर, कौशला - कुशल - कल्याणभाषी ।

राम - विरहार्क - संतप्त - भरतादि - नरनारि - शीतलकरण कल्पशाषी ॥

जयति सिंहासनासीन सीतारमण, निरखि, निर्भरहरष नृत्यकारी ।

राम संभ्राज शोभा - सहित सर्वदा तुलसिमानस - रामपुर - विहारी ॥

हे हनुमानजी ! तुम्हारी जय हो । तुम कल्याणके स्थान, संसारज्के भारको हरनेवाले, बन्दरके आकारमें साक्षात् शिवस्वरुप हो । तुम राक्षसरुपी पतंगोंको भस्म करनेवाली श्रीरामचन्द्रजीके क्रोधरुपी अग्निकी ज्वालामालाके मूर्तिमान् स्वरुप हो ॥

तुम्हारी जय हो । तुम पवन और अंजनी देवीके आनन्दके स्थान हो । नीची गर्दन किये हुए, दुःखी सुग्रीवके दुःखमें तुम सच्चे बन्धुके समान सहायक हुए थे । तुम राक्षसोंके कराल क्रोधरुपी प्रलयकालकी अग्निका नाश करनेवाले और सिद्ध, देवता तथा सज्जनोंके लिये आनन्दके समुद्र हो ॥

तुम्हारी जय हो । तुम एकादश रुद्रोंमें और जगत्पूज्य ज्ञानियोंमें अग्रगण्य हो, संसारभरके शूरवीरोंके प्रसिद्ध सम्राट हो । तुम सामवेदका गान करनेवालोंमें और कामदेवको जीतनेवालोंमें सबसे श्रेष्ठ हो । तुम श्रीरामजीके हितकारी और श्रीराम - भक्तोंके साथ रहनेवाले रक्षक हो ॥

तुम्हारी जय हो । तुम संग्राममें विजय पानेवाले, श्रीरामजीका सन्देशा ( सीताजीके पास ) पहुँचानेवाले और अयोध्याका कुशल - मंगल ( श्रीरघुनाथजीसे ) कहनेवाले हो । तुम श्रीरामजीके वियोगरुपी सूर्यसे जलते हुए भरत आदि अयोध्यावासी नर - नारियोंका ताप मिटानेके लिये कल्पवृक्ष हो ॥

तुम्हारी जय हो । तुम श्रीरामजीको राज्य - सिंहासनपर विराजमान देख, आनन्दमें विह्वल होकर नाचनेवाले हो । जैसे श्रीरामजी अयोध्यामें सिंहासनपर विराजित हो शोभा पा रहे थे, वैसे ही तुम इस तुलसीदासकी मानसरुपी अयोध्यामें सदा विहार करते रहो ॥

आपको हनुमान जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं

!!सीताराम !!
हे नाथ ! हे मेरे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं !! O My Lord! Let me never forget you!! In seeking pleasure for ourselves, we gain pleasure that perishes, and on making others happy, we enjoy perpetual pleasure. Whatever pleasure we gain by detachment from the world, could never be gained by our attachment to it.

गोस्वामी तुलसीदास - कवितावली

को भरिहे हरिके रितएं , रितवे पुनि को , हरि जौं भरिहे !
उथपे तेहि को , जेहि रामु थपे , थपिहे तेहि को , हरि जो टारिहे
तुलसी यहु जानि हियें अपने सपने नहीं कालहु तें डरिहे!
कुमया कछु हानि न औरनकी , जो पे जानकी-नाथू मया करिहे !!

जिसको भगवान् ने खाली कर दिया , उसे कौन भर सकता है और जिसे भगवान् भर देंगे उसे कौन खाली कर सकता है ! जिसे श्रीरामचन्द्रजी स्थापित कर देंगे , उसे कौन उखाड़ सकता है और जिसे वह उखाड़ेंगे उसे कौन स्थापित कर सकता है तुलसीदास अपने हृदयमें यह जानकर स्वप्नमें भी कालसे नहीं डरेगा क्योंकि यदि जानकीनाथ श्रीरामचन्द्र कृपा करेंगे तो औरो की अकृपा से कुछ भी हानि नहीं होगी !


जय श्री राधेश्याम
जय श्री सीताराम