सर्वार्थ साधक भगवनाम...

  1. मजदूर हाथो से हर प्रकार का काम करते रहे और नाम जपते रहे | घर से काम के स्थान पर जाते -आते नाम जप करे |
  2. उच्च अधिकारी, मिनिस्टर, सेक्रेटरी, जज, मुंसिफ, जिलाधीश, परगना अधिकारी, पोलिश ऑफिसर, रेलवे अफसर तथा कर्मचारी .डाक तार के कार्यकर्ता, आदि सभी कर्मचारी सभी अपना अपना काम करते तथा आते जाते समय भगवान् का नाम जीभ से लेते रहे |
  3. व्यापारी, सेठ साहूकार, उद्योगपति, दलाल आदि सब समय जीभ से भगवान् लेते रहे |
  4. गृहस्थ माँ बहिने चरखा कातते समय, चक्की पिसते समय, पानी भरते समय, गौ सेवा करते समय, बच्चो का पालन करते समय, रसोई बनाते समय, धान कूटते समय तथा घर के अन्य काम करते समय भगवान् का नाम जपती रहे |
  5. पढ़ी लिखी बहने साज श्रींगार बहुत करती है , फैसन परस्त होती जा रही है, यह बहुत बुरा है; पर वे साज श्रींगार करते समय भगवान् का नाम जपे | अध्यापिकाए और शिक्षाअर्थनी छात्राए स्कूल कॉलेज जाते आते समय भगवान् का नाम ले |
  6. सिनेमा देखना बहुत बुरा है -- पाप है, पर सिनेमा देखने वाले, रस्ते में आते जाते समय तथा सिनेमा देखते समय जीभ से भगवान् का नाम जपे |
  7. इसी प्रकार ब्रह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, सूद्र सभी नर नारी सब समय भगवान् का नाम ले | आवस्यकता हो तोह जेब में छोटी या पूरी १०८ मनियो की माला रखे |
  8. सब लोग अपने अपने घर में, गॉव में , मोहल्ले में, अडोस पडोस में, मिलने जुलने वालो में इसका प्रचार करे | यह महान पुण्य का परम पवित्र कार्य है | याद रखना चाहिए - भगवान्नाम से सारे पाप-ताप, दुःख संकंट, अभाव-अभियोग मिटकर सर्वार्थसिद्धि मिल सकती है, मोक्ष तथा भगवत प्रेम की प्राप्ति हो सकती है |
  9. मनुष्यों में वे भाग्यवान और निश्चय ही कृतार्थ है जो इस कलियुग में स्वयं भगवान् के नामका स्मरण करते है और दुसरो से करवाते है |
  10. इस महान कार्य में सभी लोग लगे , यह करबद्ध प्रार्थना है |

लाला की शरारते.....

एक गोपी के घर लाला माखन खा रहे थे
उस समय गोपी ने लाला को पकड लिया


तब कन्हैया बोले- तेरे धनी की सौगंध खा कर कहता हूँ

अब फिर कभी भी तेरे घर में नहीं आऊंगा

गोपी ने कहा - मेरे धनी की सौगंध क्यों खाता है ?
कन्हैया ने कहा. तेरे बाप की सौगंध, बस गोपी और ज्यादा खीझ जाती है और लाला को धमकाती है

परन्तु तू मेरे घर आया ही क्यों ?

कन्हैया ने कहा - अरी सखी !
तू रोज कथा में जाती है, फिरभी तू मेरा तेरा छोडती नहीं - इस घर का मै धनी हूँ

यह घर मेरा है

गोपी को आनंद हुआ कि मेरे घर को कन्हैया अपना घर मानता है, कन्हैया तो सबका मालिक है,
सभी घर उसी के है

उसको किसी कि आज्ञा लेने कि जरूरत नहीं
गोपी कहती है - तुने माखन क्यों खाया ?

लाला ने कहा - माखन किसने खाया है ?
इस माखन में चींटी चढ़ गई थी तो उसे निकलने को हाथ डाला

इतने में ही तू टपक पड़ी

गोपी कहती है ! परन्तु लाला !
तेरे ओंठो के उपर भी तो माखन चिपका हुआ है

कन्हैया ने कहा - चींटी निकालता था,
तभी ओंठो के उपर भी मक्खी बैठ गई,
उसको उड़ाने लगा तो माखन ओंठो पर लग गया होगा


कन्हैया जैसे बोलतेहै, ऐसा बोलना किसी को आता नहीं. कन्हैया जैसे चलते है,
वैसे चलना भी किसी को आता नहीं.
गोपी ने पीछे लाला को घर में खम्भे के साथ डोरी से बाँध दिया,
कन्हैया का श्रीअंग बहुत ही कोमल है


गोपी ने जब डोरी कस कर बाँधी तो लाला कि आँखमें पानी आ गया. गोपी को दया आई,
उसने लाला से पूछा - लाला! तुझे कोई तकलीफ है क्या ?

लाला ने गर्दन हिला कर कहा - मुझे बहुत दुःख हो रहा है,
डोरी जरा ढीली करो


गोपी ने विचार किया कि लाला को डोरी से कस कर बाधना ठीक नहीं,
मेरे लाला को दुःख होगा

इसलिए गोपी ने डोरी थोड़ी ढीली रखी और सखियो को खबर देने गई के मैंने लाला को बांधा है

तुम लाला को बांधो परन्तु किसी से कहना नहीं, तुम खूब भक्ति करो,
परन्तु उसे प्रकाशित मत करो, भक्ति प्रकाशित हो जाएगी तो भगवान चले जायेंगे,
भक्ति का प्रकाश होने से भक्ति बढती नहीं , भक्ति में आनंद
आता नहीं

बाल कृष्ण सूक्ष्म शरीर करके डोरी से बहार निकल गए और गोपी को अंगूठा दिखाकर कहा,
तुझे बांधना ही कहा आता है ?

गोपी कहती है - तो मुझे बता, किस तरह से बांधना चाहिए  

गोपी को तो लाला के साथ खेल करना था

लाला गोपी को बांधते है...
योगीजन मन से....
श्री कृष्ण का स्पर्श करते है तो समाधि लग जाती है.
यहाँ तो गोपी को प्रत्यक्ष श्री कृष्ण का स्पर्श हुआ है.

गोपी लाला के दर्शन में तल्लीन हो जाती है. गोपी को ब्रह्म - सम्बन्ध हो जाता है.
लाला ने गोपी को बाँध दिया.

गोपी कहती है की लाला छोड़! छोड़!
लाला कहते है - मुझे बांधना आता है.
छोड़ना तो आता ही नहीं


यह जीव एक ऐसा है, जिसको छोड़ना आता है,
चाहे जितना प्रगाढ़ सम्बन्ध हो परन्तु स्वार्थ सिद्ध होने पर उसको भी छोड़ सकता है,
परमात्मा एक बार बाँधने के बाद छोड़ते नहीं


जय श्री कृष्ण
राधे राधे जी
जय जय राधे राधे...
एक व्यक्ति ने जब एक संत के बारे में सुना तो वह पाकिस्तान से रुहानी इत्र लेकर वृन्दवन आया.

इत्र सबसे महगा था जिस समय वह संत से मिलने गया उस समय वे भावराज में थे आँखे बंद करे भगवान राधा-कृष्ण जी के होली उत्सव में लीला में थे.

उस व्यक्ति ने देखा की ये तो ध्यान में है .
तो उसने वह इत्र की शीशी उनके पास में रख दी और पास में बैठकर, संत की समाधी खुलने का इंतजार करने लगा.

तभी संत ने भावराज में देखा राधा जी अपनी पिचकारी भरकर कृष्ण जी के पास आई,
तुंरत कृष्ण जी ने राधा जी के ऊपर पिचकारी चला दी.

राधा जी सिर से पैर तक रंग में नहा गई अब तुरंत राधा जी ने अपनी पिचकारी कृष्ण जी पर चला दी पर राधा जी की पिचकारी खाली थी.

संत को लगा की राधा जी तो रंग डाल ही नहीं पा रही है संत ने तुरंत वह इत्र की शीशी खोली और राधा जी की पिचकारी में डाल दी और तुरंत राधा जी ने पिचकारी कृष्ण जी पर चला दी, पर उस भक्त को वह इत्र नीचे जमीन पर गिरता दिखाई दिया उसने सोचा में इतने दूर से इतना महगा इत्र लेकर आया था पर इन्होने तो इसे बिना देखे ही सारा का सारा रेत में गिरा दिया पर वह कुछ भी ना बोल सका.

थोड़ी देर बाद संत ने आँखे खोली उस व्यक्ति ने उन्हे प्रणाम किया.

संत ने कहा- आप अंदर जाकर बिहारी जी के दर्शन कर आये.

वह व्यक्ति जैसे ही अंदर गया तो क्या देखता है की सारे मंदिर में वही इत्र महक रहा है और जब उसने बिहारी जी को देखा तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ बिहारी जी सिर से लेकर पैर तक इत्र में नहा रहे थे
उसकी
आँखों से प्रेम अश्रु बहने लगे और वह सारी लीला समझ गया तुरंत बाहर आकर संत के चरणो मे गिर पड़ा और उन्हे बार-बार प्रणाम करने लगा.

बाँके बिहारी लाल की जय....
क्रोधकी अधिकता के नाश का उपाय पूछा सो निम्नलिखित साधनोँको काममेँ लानेसे क्रोध का नाश हो जाता है ।

(१) सब जगह एक वासुदेव भगवान का ही दर्शन करे । जब भगवानको छोड़कर दूसरी कोई वस्तु ही नहीँ रहेगी तब क्रोध किसपर होगा ?

(२) यदि सब कुछ नारायण है तब फिर नारायणपर क्रोध कैसे हो ! सबके नारायण स्वरुप होने के कारण मैँ सबका दास हूँ । उस नारायणकी इच्छा के अनुसार ही सब कुछ होता है और वही प्रभु सबकुछ करता है, तब फिर क्रोध किसपर किया जाय?

(३) नारायणकी शरण होना चाहिए, जो कुछ होता है सो उसी की आज्ञासे होता है । अपनी इच्छासे करने पर नारायण की शरणागति मेँ दोष आता है । मालिक अपने आप चाहे सो करेँ, मैँ निश्चिन्त हूँ । ऐसी भावना होनी चाहिए । चाहना करनेसे क्रोध होता है । इच्छा बिना क्रोध नहीँ हो सकता ।

(४) सब कुछ काल भगवानके मुख मेँ देखना चाहिए । थोड़े दिन के लिए मैँ क्रोध क्योँ करुँ ? संसार सब अनित्य है, समयानुसार सभी का नाश होनेवाला है, जीवन बहुत थोड़ा है, किसी के मनको कष्ट पहुँचे ऐसा काम क्योँ करना चाहिए ?

(५) जो अपनेसे बड़ेपर क्रोध आवे तो उससे क्षमा माँगे और उसके चरणोँमेँ गिर जाय और जो वह अपने ऊपर क्रोध करे तो भी उसके चरणोँमेँ गिर जाय तथा हँसकर प्रसन्न मनसे बातेँ करे या चुप हो जाय ।

(६) अपने से छोटेपर क्रोध आवे तो उसके हित के लिए केवल दिखानेमात्र के लिए ही वह क्रोध होना चाहिए । अपने स्वार्थ का त्याग होना चाहिए, इच्छा ही क्रोधमेँ हेतु है, इससे इच्छाका नाश हो, ऐसा उपाय करना चाहिए । भगवान के स्वरुप और नाम का चिन्तन हुए बिना ऐसा होना कठिन है |

सेठ जयदयाल जी गोयन्दका, गीताप्रेस गोरखपुर