भूल जाओ ...




भूल जाओ ...

दुसरे के द्वारा तुम्हारा कभी कोई अनिष्ट हो जाय तो उसके लिये दुःख न करो; उसे अपने पहले किये हुए बुरे कर्म का फल समझो, यह विचार कभी मन में मत आने दो कि 'अमुकने मेरा अनिष्ट कर दिया है, यह निश्चय समझो कि ईश्वरके दरबार में अन्याय नहीं होता, तुम्हारा जो अनिष्ट हुआ है या तुम पर जो  विपत्ति आयी है, वह अवश्य ही तुम्हारे पूर्वकृत कर्म का फल है, वास्तवमें बिना कारण तुम्हे कोई कदापि कष्ट नहीं पहुँचा सकता ! न यही सम्भव है कि कार्य पहले हो और कारण पीछे बने, इसलिये तुम्हे जो कुछ भी दुःख प्राप्त होता है, सो अवश्य ही तुम्हारे अपने कर्मों का फल है; ईश्वर तो तुम्हे पापमुक्त करनेके लिये दयावश न्यायपूर्वक फल का विधान करता है ! जिसके द्वारा तुम्हे दुःख पहुँचा है उसे तो केवल निमित्त समझो; वह बेचारा अज्ञान और मोहवश निमित्त बन गया है; उसने तो अपने ही हाथों अपने पैरों में कुल्हाड़ी मारी है और तुम्हे कष्ट पहुँचानेमें निमित्त बनकर अपने लिये दु;खों को निमन्त्रण दिया है; यह तो समझते ही होंगे कि जो स्वयं दु:खो कों बुलाता है वह बुद्धिमान् नहीं है, भुला हुआ है; अतः वह दया का पात्र है ! उस पर क्रोध न करो, बदले में उसका बुरा न चाहो, कभी उसकी अनिष्टकामना न करो, बल्कि भगवान् से प्रार्थना करो कि हे भगवन् ! इस भूले हुए जीव को सन्मार्ग पर चढ़ा दो! इसकी सदबुद्धिको जाग्रत कर दो; इसका भ्रमवश किया हुआ अपराध क्षमा  करो ! 

॥ हे मेरे नाथ! तुम प्यारे लगो, तुम प्यारे लगो! ॥
॥ O' My Lord! May I find you lovable, May I find you lovable! ॥