हमारे दोष ( काम, क्रोध, लोभ, मोह, अंहकार) ही हमारे सबसे बड़े शत्रु है

हरे कृष्ण
हमारे दोष ( काम, क्रोध, लोभ, मोह, अंहकार) ही हमारे सबसे बड़े शत्रु है | जब हम भगवान के रस्ते पर चलते है तो हमारे दोष ही हमारे सामने आते है | जब हम कर्म करते है तो कोई एक दोष हमारे सामने आ जाता है ओर हम उस दोष के साथ चलने लगते है , भगवान को भूल जाते है | भगवान को एक तरफ कर देते है | काम, क्रोध, लोभ, मोह, एवं अंहकार- इन पांचो में से किसी न किसी का आकषर्ण मन में होता है तो फिर साधन - भजन की जगह पर मन उसमें फिसल पड़ता है |

आये थे हरिभजन को, ओटन लगे कपास.....

पहले चले तो थे भगवान के लिये लेकिन छुपी हुई कोई वासना थी, उसकी पूर्ति होने लगी तो भगवान, भगवान की जगह पर रहे और हम लोग उसी वासनापूर्ति में उलझ जाते हैं एवं अपना कीमती समय पूरा कर देते हैं | फिर उसी वासनापूर्ति में जो हमारा समर्थन करते हैं वे हमारे मित्र बन जाते हैं और जो समर्थन नहीं करते हैं वे हमारे दुश्मन बन जाते हैं | इससे राग द्वेष उत्पन्न होने लगते हैं जो कि हमें साधना पथ से विचलित कर देता हैं | इन सब विघ्नों से बचते हुए भगवान को प्राप्त करना चाहिए |

आपका दास
नारद प्रिय दास