रावण , कंस आदि नहीं सुधरे तो नहीं ही सुधरे . परन्तु उन्हें भी इस पावन धरा से "सिधारना" तो पड़ा ही.
दर असल यह सनातन सिद्धांत है कि "आवागमन" की इस अटल प्रक्रिया को कोई क्या चैलेंज कर सकता है !
सिद्धांत तो सिद्धांत ही होता है.
एक पत्रिका में उल्लेख है कि :
परमात्मा के घर में सुख-समृद्धि , धन-वैभव , आनंद-उल्लास ,यश- कीर्ति आदि का ऐसा अपूर्व भण्डार है , जिसे वे अपने भक्तों पर दिल खुला कर न्यौछावर करते हैं............
लेकिन फिर भी उनके भण्डार में तिल मात्र भी जगह खाली नहीं होती है .
ये तो हम ही मूर्ख , अज्ञानी , अभिमानी- दम्भी , निक्कमे हैं जो उस सर्वोच्च सत्ता को स्वीकार करने में अपनी हेठी समझते हैं.
बिना ज्ञान के , बिना नीति के , बिना कारण के येन -केन प्रकारेण इस नाशवान धन को इकट्ठा करने में इस बेश- कीमती जीवन को व्यर्थ कर डालते हैं ,
और .....
और अंत समय में पल्ला झाड़ कर इस देश-दुनिया से कूच कर जाते हैं.
मगर यह भी ध्यान देने की बात है कि जिन्होंने भी सदाचार पूर्वक , प्रभू की इच्छा का मान रख कर जिस धन का उपार्जन किया , उसे सद्कार्यों में दरियादिली से पानी की तरह बहाने में कोई झिझक भी नहीं दिखाई.
ऐसे सद्गृहस्थों के धन के संग्रह से पीढ़ियों तक सद्कार्य होते ही रहते हैं.
"विरल संत परम श्रद्धेय ब्रह्मलीन स्वामी रामसुखदासजी महाराज"
अक्सर अपने प्रवचनों में कहा करते थे कि जिस घर में लक्ष्मी "नारायण" के साथ यानि नीति पूर्वक कमाई होती है , वहां लक्ष्मी का वास सात पीढ़ियों तक होता है.
और जहाँ लक्ष्मी अपने वाहन "उल्लू"पर बैठ कर , यानि अनीति पूर्वक धन को हड़प लिया जाता है , वहाँ से लक्ष्मी कुछ सी सालों में उस घर की बरबादी कर विदा हो जाती है.
क्या होगा इस तरह के संग्रह से ?
क्यों झूठा बोझ बाँध रहे हैं -
इस काया के छोटे से सिर पर ?
क्या ले जाओगे साथ में?
किसके लिए यह एकत्रीकरण अभियान चला रखा है ?
कहावत भूल गए ?
पुनः सुनो :
क्यों धन सींचो पूत सपूतां ;
क्यों धन सींचो पूत कपूतां
बेटा तो जैसा भी होगा बसर कर ही लेगा -अपने कर्मों के अनुसार !
समस्त धर्मों के सद्ग्रंथों को छान लो , कहीं भी , किसी भी ग्रन्थ में कपट पूर्वक धन के संग्रह को नहीं सराहा गया है ! अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है,
इस धर्म-शृंखला में "प्रायश्चित"की महिमा भी है , ईमानदारी पूर्वक अपने प्रभु / ईश्वर / खुदा / ईशु .....जिस भी धर्म के अनुयायी हैं , के समक्ष समर्पित कर दीजिये ,
ऐसे धन को , क्षमा अवश्य मिल जायेगी ,
नहीं तो "वह"तो सर्वशक्तिमान" है , उसी के पास हमारी डोर है , वह तो अपना चमत्कार दिखाएगा ही...........
दर असल यह सनातन सिद्धांत है कि "आवागमन" की इस अटल प्रक्रिया को कोई क्या चैलेंज कर सकता है !
सिद्धांत तो सिद्धांत ही होता है.
एक पत्रिका में उल्लेख है कि :
परमात्मा के घर में सुख-समृद्धि , धन-वैभव , आनंद-उल्लास ,यश- कीर्ति आदि का ऐसा अपूर्व भण्डार है , जिसे वे अपने भक्तों पर दिल खुला कर न्यौछावर करते हैं............
लेकिन फिर भी उनके भण्डार में तिल मात्र भी जगह खाली नहीं होती है .
ये तो हम ही मूर्ख , अज्ञानी , अभिमानी- दम्भी , निक्कमे हैं जो उस सर्वोच्च सत्ता को स्वीकार करने में अपनी हेठी समझते हैं.
बिना ज्ञान के , बिना नीति के , बिना कारण के येन -केन प्रकारेण इस नाशवान धन को इकट्ठा करने में इस बेश- कीमती जीवन को व्यर्थ कर डालते हैं ,
और .....
और अंत समय में पल्ला झाड़ कर इस देश-दुनिया से कूच कर जाते हैं.
मगर यह भी ध्यान देने की बात है कि जिन्होंने भी सदाचार पूर्वक , प्रभू की इच्छा का मान रख कर जिस धन का उपार्जन किया , उसे सद्कार्यों में दरियादिली से पानी की तरह बहाने में कोई झिझक भी नहीं दिखाई.
ऐसे सद्गृहस्थों के धन के संग्रह से पीढ़ियों तक सद्कार्य होते ही रहते हैं.
"विरल संत परम श्रद्धेय ब्रह्मलीन स्वामी रामसुखदासजी महाराज"
अक्सर अपने प्रवचनों में कहा करते थे कि जिस घर में लक्ष्मी "नारायण" के साथ यानि नीति पूर्वक कमाई होती है , वहां लक्ष्मी का वास सात पीढ़ियों तक होता है.
और जहाँ लक्ष्मी अपने वाहन "उल्लू"पर बैठ कर , यानि अनीति पूर्वक धन को हड़प लिया जाता है , वहाँ से लक्ष्मी कुछ सी सालों में उस घर की बरबादी कर विदा हो जाती है.
क्या होगा इस तरह के संग्रह से ?
क्यों झूठा बोझ बाँध रहे हैं -
इस काया के छोटे से सिर पर ?
क्या ले जाओगे साथ में?
किसके लिए यह एकत्रीकरण अभियान चला रखा है ?
कहावत भूल गए ?
पुनः सुनो :
क्यों धन सींचो पूत सपूतां ;
क्यों धन सींचो पूत कपूतां
बेटा तो जैसा भी होगा बसर कर ही लेगा -अपने कर्मों के अनुसार !
समस्त धर्मों के सद्ग्रंथों को छान लो , कहीं भी , किसी भी ग्रन्थ में कपट पूर्वक धन के संग्रह को नहीं सराहा गया है ! अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है,
इस धर्म-शृंखला में "प्रायश्चित"की महिमा भी है , ईमानदारी पूर्वक अपने प्रभु / ईश्वर / खुदा / ईशु .....जिस भी धर्म के अनुयायी हैं , के समक्ष समर्पित कर दीजिये ,
ऐसे धन को , क्षमा अवश्य मिल जायेगी ,
नहीं तो "वह"तो सर्वशक्तिमान" है , उसी के पास हमारी डोर है , वह तो अपना चमत्कार दिखाएगा ही...........