चौरासी से छुटकारा...

चौरासी से छुटकारा...

एक बनिया था !
उसका व्यापार काफी जोरों से चल रहा था.

किन्तु उसके दिल में साधू संतो के प्रति प्यार की भावना थी !
अतः आये गए अथितियों की सेवा भी करता था.

एक बार एक साधू उसके घर पर आकर रुके !
उसने साधू की आवभगत की !

अपने घर पर भोजन कराया.

साधू जी बड़े प्रसन्न हो गए और सोचने लगे की इस बनिये की आत्मा का कल्याण करना चाहिए !

उन्होंने बनिये से कहा कि-
भाई ! मैं तुम्हे आत्म कल्याण का मार्ग बताना चाहता हूँ क्या तुम मुझसे मार्ग लोगे ?

बनिये ने कहा की -
महाराज जी ! अभी तो मैं बहुत ही व्यस्त हूँ आप कुछ दिन बाद मार्ग बताइए ताकि मैं आत्मचिंतन में समय दे सकूँ !

साधू जी चले गये !

२-३ वर्ष के बाद साधू जी फिर उस बनिये के घर पहुंचे बनिया तो था नहीं उसके बच्चो ने साधू की आवभगत की और बताया कि उनका पिता अर्थात वह बनिया स्वर्ग सिधार गया...

साधू ने ध्यान लगाया तो देखा कि वह बनिया तो अपने ही घर में बैल कि योनी में आया है !

उन्होंने बच्चो से पूछा कि -
"क्या तुम्हारे घर कोई नया बैल आया है"?

उन्होंने बड़ी प्रसन्नता से कहा कि-
"हाँ"

और साधू जी को बैल दिखलाया !

साधू ने बैल के कान में कहा कि -
"देखो तुम काम में फंसे रहे आत्म कल्याण का मार्ग नहीं लिया और तुम्हारी योनी बदल गयी !

" क्या अब तुम अपना आत्म कल्याण चाहतेहो" ?

बैल बोला-
महाराज अभी तो मैं खेत जोतने में व्यस्त हूँ ! गाड़ी हांकता हूँ !
अतः कुछ दिन बाद आप आइये.

" साधू जी फिर लौट गए !

कुछ दिन बाद वे फिर आये और उन्होंने बच्चो से पूछा-
"तुम्हारा वह बैल कहाँ गया ?"

बच्चो ने कहा वह तो महाराज मर गया |"

साधू जी ने पुनः ध्यान लगाया तो मालूम हुआ कि वह बैल अपने ही दरवाजे का कुत्ता बनकर आया है ...

उन्होंने बच्चो से कहा कि-
तुम्हारे यहाँ कोई "काला कुत्ता है?"

बच्चों ने कहा हाँ महाराज बहुत ही अच्छा कुत्ता है !
है तो छोटा परन्तु अभी से भौंकता बहुत है!

" उन्होंने कुत्ते को साधू जी को दिखलाया .

साधू जी कुत्ते के पास जाकर बोले-
"भाई अब अपनी आत्मा का कल्याण कर लो.!"

कुत्ता बोला-
"महाराज अभी तो मैं घर कि रखवाली करता हूँ !छोटे छोटे बच्चे बाहर दरवाजे पर ही टट्टी कर देते हैं !
उन्हें भी साफ़ करता हूँ !
अतः आप कुछ दिन बाद आइये मैं अवश्य आत्म कल्याण कराऊंगा...!

साधू जी फिर लौट गए.

साधू सोचते रहे कि मैंने बनिये कि रोटी खाई है अतः जब तक मैं उसकी आत्मा का कल्याण नहीं करूँगा, तब तक साधू कर्म को पूरा नहीं कर पाउँगा.!

अतः वह जल्दी से जल्दी उसकी आत्मा का कल्याण करना चाहते थे.

कुछ दिन बाद साधू फिर उसी बनिये के घर पहुंचे ,
उन्होंने बच्चो से पूछा कि -
वह काला कुत्ता कहा गया?

बच्चे बोले -
"वह तो मर गया महाराज |"

साधू ने पुनः ध्यान कर के देखा तो मालूम हुआ कि वह सांप बनकर अपने धन कि रक्षा कर रहा है.

साधू ने बोला कि- तुम्हारे पिता ने तुम लोगों के लिए धन संपत्ति कुछ रखी है ?"

वे बोले महाराज रखी तो है किन्तु जब हम उसे लेने जाते हैं तो वहां एक सांप आकर बैठ गया है वह फुफ्कार मारता है !

साधू ने कहा कि तुम मेरी बात मान लो ,
तुम लोग डंडे लेकर चलो,
मैं तहखाना खोलूँगा वह सांप फुफ्कार मारेगा,
तुम लोग उसे डंडे से मारना किन्तु यह ध्यान रखना कि उसके सिर पर चोट न लगे
नहीं तो वह मर जाएगा.
मरे नहीं घायल हो जाये!

बच्चो ने वैसा ही किया.

जब सांप घायल हो गया तो महात्मा जी ने उसके कान में कहा कि-
"अब तुम क्या चाहते हो बोलो,
जिसकी रखवाली की वही तुम्हे डंडों से मारकर घायल बना रहे हैं.!"

सांप दर्द और जख्म से बैचैन था उसने कहा -
"महाराज अब असहनीय दर्द हो रहा है मेरा आत्म कल्याण कीजिये!"

महात्मा जी ने बनिये की रोटी की कीमत को चुका दिया उसका आत्म कल्याण कर दिया ताकि उसकी जीवात्मा फिर चौरासी योनी में न भटक सके...!