शिव रात्री की धूम श्रीमन नारदीय मिशन में.....

हरे कृष्णा
सभी भक्तो को,

श्रीमन नारदीय भगवत मिशन में शिव रात्रि का पर्व बड़ी ही धूम धाम से मनाया गया सर्वप्रथम मंदिर में नित्य की तरह संकीर्तन हुआ उसके बाद हमारे भैया (श्री कृष्ण चरण दास) जी ने शिव रात्रि का महात्मय बताया और उससे जुडी हुई उगना की कथा बतलाई :- ये कथा बिहार राज्य की है , जहाँ एक ब्रह्मण(विद्यापति मिश्र) अपनी पत्नी के साथ रहता(विद्यापति मिश्र) अपनी पत्नी के साथ रहता था जोकी बहुत बड़े शिव भक्त थे, प्रतिदिन के कर्म में जप, पाठ, ध्यान, पूजा, दान नियम से करते थे पर उनकी आर्थिक स्थति ठीक नहीं थी और साथ ही कोई संतान भी नहीं थी, और इस बात का उन्हें कोई गम भी नहीं था, एक दिन एक पुरुष ब्रह्मण के द्वार पर आकर शिव स्तुति गाने लगा, ब्रह्मण परिवार शिव स्तुति गाने वाले को द्वार पर देखने गए और उसे देखते ही मुगद हो गए 7 फीट का सुंदर जवान पुरुष जिसकी लम्बी-२ जटाए है, श्वेत वस्त्र पहने हुए और मुख मंडल पर एक सुन्दर सी आभा झलक रही थी, उस सुंदर पुरुष ने ब्रह्मण से कहा में आपके यहाँ काम करना चाहता हूँ तब ब्रह्मण ने कहा ये तो ठीक है पर हमारे यहाँ पर आपको आपकी सेवा के बदले देने के लिए कुछ भी नहीं है, तब उस सुंदर पुरुष ने कहा मुझे बस दो वक्त की रोटी के सिवाय और कुछ भी नहीं चाहिए, तब ब्रह्मण ने उस सुन्दर पुरुष से पूछा के हे सुंदर पुरुष आपका नाम क्या है ? तो उस सुंदर पुरुष ने कहा मेरा नाम उगना है, इसके बाद ब्रह्मण परिवार उगना को घर के अन्दर ले गए, उगना पूर्ण निष्ठा भावः से ब्रह्मण परिवार के सेवा करने लगा, उगना सुबह के समय ब्रह्मण के पूजा के सारे बर्तन साफ़ करता और चडाने वाले जल की व्यवस्था और पूजा की नित्य पूरी व्यवस्था करता और दिन के समय ब्राह्मणी के रसोई कार्यो में मदद करता, पीने और नहाने के लिए जल की सेवा देता और देर रात्रि तक ब्रह्मण और ब्राह्मणी के पैर दबाता एक दिन ब्रह्मण के मन में बैजनाथ के दर्शन की इच्छा हुई तो उसने उगना और अपनी अपनी पत्नी को बताया, और बैजनाथ की और रुख किया, साथ में उगना को भी लिया, साथ में कुछ खाने और पीने के लिए गंगाजल साथ में लिया क्योकि ब्राह्मण देवता केवल गंगाजल ही पिया करते थे, यात्रा लम्बी होने के कारण जल जल्द ही खत्म हो गया तो ब्राह्मण देवता ने पानी पीने के इच्छा हुई पर बीहड़ जंगल में होने के कारण उन्हें इस बात का ज्ञान तो था की यहाँ पर गंगाजल तो नहीं मिल पायेगा और यात्रा पूरी करने के लिए जल जरुरी है तो उन्होंने उगना से सादा पानी लाने को कहा, तो उगना पानी लेने के लिए जल्द ही वहाँ से चला गया और कुछ ही देर बाद वह जल लेकर आ गया तो उसने उगना से कहा तुम इस बीहड़ जंगल में इतनी जल्दी कहा से जल लेकर आये हो, तो उगना ने कहा पास ही नदी से जल मिल गया, इस बात को मानकर ब्रह्मण ने जल पिया और जल पीते ही वो चौक गए और बोले अरे ये तो गंगाजल है तो उन्होंने कहा :- उगना तू सच-२ बता इस बीहड़ जंगल में गंगाजल कहा से लेकर आया है तो उगना ने कहा हूँ तो पास से ही लेकर आया हूँ और तरह-२ के बहाने बनाने लगा तो ब्रह्मण ने उगना का हाथ पकड़ कर पूछा तू सच-२ बता तू कोई जादूगर तो नहीं, तू कोन है मुझे सच-२ बता अपने बारे में तभी उगना का स्वरुप बदल गया, अब उसके शरीर से एक सुंदर सी आभा निकल रही थी और पिंगल जटाएं घुटनों तक लटक रही थी और उन्ही जटाओं में से गंगा की तीव्र धरा बह रही थी , शरीर पर बाघम्बर , हाथ में त्रिशूल, कर्णौ में सर्प कुंडल धारण किये हुए, मस्तक पर चन्द्र, गले रुद्राक्ष की माला और वासुकी धारण किये हुए कर्पुर के सामान गोरे भगवान नीलकंठ त्रिनेत्र धारी महाशिव बिम्ब फल से सामान लाल -२ होठो से मुस्कराते हुए प्रेम से लिप्त मधुर गम्भीर वचन बोले : मैं शिव, जिसकी आप प्रतिदिन आराधना करते हो आपके प्रेम-वश के कारण आपके पाश में आपके पीछे -२ यहाँ तक चला आया हूँ क्या आपने मुझे पहचाना ? इतना सुनते ही ब्रह्मण भगवान के श्री चरणों में गिर पड़ा और उसके नेत्रों से अश्रुओं की धारा फ़ुट पड़ी और ब्रह्मण अवरुद्ध कंठ से बोला : हे नाथ आपके सिवा इस ब्रह्माण्ड में मैं और किसी को जनता तक नहीं, आप ही तो मेरे आराध्य है आप हमेशा मेरे साथ रहे और मुझ नीच ने आपको पहचाना तक नहीं और इसके अलावा आपसे दिन प्रतिदिन सेवा और लेता रहा , मुझ नीच को क्षमा कर दीजिये इतना कहने पर भगवान ने उनको अपने गले से लगा लिया भक्त और भगवान एक दुसरे के प्यार में तृप्त हो गए वहां एक अभूतपूर्व प्रेम और शांति का वातावरण बन गया , ब्रह्मण बोले : हे नाथ मैं अब और कहीं नहीं जाना चाहता , जब मेरे गोरे ठाकुर जी साक्षात् मेरे साथ हैं तो मैं और कहीं दर्शन के लिए जाना नहीं चाहता इतना सुनते ही भगवान ने उन्हें फिर से गले से लगा लिया भगवान बोले विद्यापति अब मेरे जाने का समय हो गया है , तभी ब्रह्मण ने फिर से चरणों को पकड़ लिया और कहा नहीं नाथ में आपको जाने नहीं दूंगा इतनी मुदतो बाद तो मिले और जाने की बात करते हो, मैं अब आपको अपने से आलग नहीं होने दूंगा, यदि आप मुझसे अलग हुए तो मैं आपने प्राणों का त्याग कर दूंगा, भगवान मुस्कराए और कहा :- मैं एक ही शर्त पर आपके साथ रह सकता हूँ यदि आप मेरे इस परिचय को छुपा कर रखे तो ही मैं आपके साथ रह सकता हूँ , इतना सुनते ही ब्रह्मण ने कहा मुझे यह शर्त मंजूर है इसके बाद भक्त और भगवान दोनों घर की और लौट गए घर के द्वार में घुसते ही ब्राह्मणी ने कहा आप दोनों तो बैजनाथ के लिए गए थे, इतनी जल्दी कैसे आ गए तब ब्रह्मण ने उगना(भगवान) की और देखकर कहा दर्शन तो मैं कर आया, ब्राह्मणी ने कहा भला इतनी जल्दी भी कोई बैजनाथ से वापस आया है क्या ? अब घर का वातावरण कुछ और ही था, ब्रह्मण अब किसी और ही धुन में दिखाई देते थे, उनका अब सारा ध्यान उगना(भगवान) पर ही केन्द्रित था, अब सारा समय उगना के साथ ही बिताते थे, खाते पीते, उठते बैठते बस अब उगना ही उगना था जिसके कारण ब्राह्मणी को बहुत परेशानी होने लगी, और परेशानी का कारण था उगना, क्योंकि अब सब कुछ बदल चुका था पहले उगना (भगवान) ब्रह्मण परिवार के पश्चात भोजन करता था , लेकिन अब उगना (भगवान) ब्रह्मण के साथ भोजन लिया करता था और कभी कभी ब्रह्मण देवता उगना (भगवान) की पात से कुछ भोजन उठा कर खाने लगते थे , ब्रह्माणी इसको देख कर सकपका जाती थी पर कुछ बोले नहीं पाती थी एक दिन रात के समय ब्रह्मण को उगना (भगवान) के चरण दबाते देख, तो उसका पारा सातवे आसमान पर चढ़ गया , उसी दिन उसने उगना (भगवान) को सबक सिखाने की सोची एक दिन ब्रह्मण उगना (भगवान) के सामने ध्यान लगा रहे थे तभी ब्रह्माणी ने रसोई की ओर से उगना (भगवान) को आवाज़ दी ओर उगना (भगवान) रसोई की ओर उठ चला और ब्रह्मण देवता अपने ध्यान में चले गए बाहर जाकर उगना (भगवान) ने ब्रह्माणी से पूछा माँ कुछ काम था क्या मुझसे ? उसने उगना (भगवान) की न सुनते हुए चूल्हे से एक जलती हुई बड़ी लकडी निकाल कर उगना (भगवान) को पीटना शुरू कर दिया और भगवान चुप - चाप मार खाते रहे की तभी ब्रह्मण ने ध्यान में भगवान को कष्ट में देखा और तत्काल ही उनका ध्यान टूट गया और विचलित होकर उन्होंने उगना (भगवान) को पुकारते हुए घर के बाहर की ओर आये, बाहर का द्रश्य देखकर उनके पैरो तले जमीन सरक गयी, उन्होंने ब्रह्माणी की जलती हुई लकड़ी पकड़कर एक ओर फैंक दी और कहा अरी पापिन ये तुने क्या किया, साक्षात् भगवान शिव तुम्हारे आगंन में पधारे हुए है ओर तुम उन्हे ही मार रही हो, इतना सुनते ही भगवान अंतर्ध्यान हो गए ब्रह्मण, ब्रह्माणी को बहुत ही पश्चाताप हुआ की हमसे ये क्या हो गया ब्रह्मण को तो इस बात का बहुत ही दुःख हो रहा की मैंने तो खो दिया है, वो इस वियोग में पागल से हो रहे थे ओर बार-२ इस वाक्य को दोहराते रहते थे.............. मोर उगना कित गयेला, मोर उगना कित गयेला, मोर उगना कित गयेला, मोर उगना कित गयेला.

इसके उपरांत रात्रि 11 बजे से शिव रात्रि का संकीर्तन शुरु हुआ ओर रात भर शिव स्तुति, संकीर्तन चलता रहा और सभी भक्त -गढ़ शिव आनंद में डूबते रहे, शिव गान, आरती ये सब का आनंद ले रहे थे 4 बजे प्रसाद वितरण के बाद सभी आपने-२ घरो की ओर चले गए |


आपका दास
राधा माधव दास