चेष्टा भजन और सत्संग के लिये....
कोई
मनुष्य बीमार है । वैद्य कहता है कि अमुक वस्तु आने से यह बच सकता है ।
ऐसे समय उस वस्तु के लिये कितनी अधिक चेष्टा होती है । ऐसी ही चेष्टा भजन
और सत्संग के लिये होनी चाहिये । इच्छा के तीव्र होने से ही तीव्र चेष्टा
होती है और तीव्र चेष्टा होने से ही इष्ट वस्तु की प्राप्ति होती है ।
मिथ्या सांसारिक वस्तुएँ तो चेष्टा करने पर भी शायद नहीँ मिलती एवं मिल
जानेपर भी रोगी को शायद लाभ पहुँचे अथवा न पहुँचे, परंतु भजन और सत्संग के
लिये चेष्टा करने से तो अवश्य ही सफलता प्राप्त होती है । भजन-सत्संगरुपी
औषध का बहुत दिनोँ तक सेवन करने से जन्म-मरणरुपी कठिन भव-रोग अवश्य ही नष्ट
हो जाता है । सत्य की चेष्टा कभी व्यर्थ नहीँ जाती ।