हे नाथ ! मैं आपको कभी भूलूँ नहीं ।
हर पल ये कहते रहो कभी भूलूँ नहीं ॥
प्रात: उठूँ लेके नाम तुम्हारा,
काम करूँ सब समझ के तुम्हारा,
याद करूँ रात दिन कभी भूलूँ नहीँ ॥
घर को मैं समझूँ हरि मन्दिर तुम्हारा,
हर जन में देखूँ मैं रूप तुम्हारा,
सब में हरि आप हैं कभी भूलूँ नहीं ॥
जो भी मिला है प्रसाद तुम्हारा,
अमृत समझ के करूँ मैं गुजारा,
सुखमें या दुखमें रहूँ कभी भूलूँ नहीं ॥
‘मोहन’ के जीवन को तुमने सँवारा,
कृपा करी देके मुझको सहारा,
नर तन दिया आपका कभी भूलूँ नहीं ॥
Gita Press, Gorakhpur