मानव का परमात्मा से अटूट सम्बन्ध
संत कबीर ने एक पद में लिखा है "पानी बिच मीन पियासी मोहे सुनी सुनी आवे हांसी" | रस स्वरुप परमात्मा में से उद्भूत हुए हम रस स्वरुप परमात्मा में स्थित है | उन्ही के द्वारा सुरक्षित, संचालित, पालित हैं और रस के अभाव में कहाँ-कहाँ भटकते फिर रहे हैं ! तो इस दशा को मिटाना हम लोगों के लिए आवश्यक है जिसमें लगता है कि हम उससे बिछुड़ गए हैं | उस रस स्वरुप परमात्मा से हम बिछुड़ गए हैं, यह सत्य नहीं है | यह केवल भ्रम है, क्योंकि बिछुड़ जाते तो हमारी सत्ता ही नहीं होती | वह जो हमारा उद्गम है, Generation of life है, उससे एक क्षण के लिए भी सम्बन्ध टूट जाय तो हमारी सत्ता ख़त्म हो जाती, अस्तित्व ही नहीं रहता | तो किसी भी काल में सम्बन्ध टूटा नहीं है और न कभी टूटेगा | वह टूटने वाला है ही नहीं | द्रश्य से जो सम्बन्ध जुड़ा हुआ प्रतीत हो रहा है वह भी कोरा भ्रम है |परमात्मा से कभी सम्बन्ध टूटा नहीं, मिटा नहीं, छूटा नहीं, टूटेगा नहीं | वे तो छोड़ते ही नहीं हैं, वे कैसे छोड़ेंगे | स्वामीजी महाराज अपने शानदार व्यक्तित्व (personality) के प्रभाव में आ जाते तो कहते कि परमात्मा की हिम्मत नहीं है कि हमसे सम्बन्ध तोड़ दे और अपनी करूणा कि गोद से निकाल कर हमको फेंक दें | अगर ऐसा कर सकेंगे तो अनंत माधुर्यवान का उनका विशेषण ख़त्म हो जायगा | अनंत माधुर्यवान किसको कहते हैं ? जो केवल अपने स्वभाव से ही पतित से पतित को भी अपनी करूणा से संभाल कर रखता है | हम पतित से पतित हो सकते हैं लेकिन उनके अनंत माधुर्य की जो विशेषता है, उसको वे ख़त्म नहीं करेंगे |मानव का परमात्मा से अटूट सम्बन्धसंत कबीर ने एक पद में लिखा है "पानी बिच मीन पियासी मोहे सुनी सुनी आवे हांसी" | रस स्वरुप परमात्मा में से उद्भूत हुए हम रस स्वरुप परमात्मा में स्थित है | उन्ही के द्वारा सुरक्षित, संचालित, पालित हैं और रस के अभाव में कहाँ-कहाँ भटकते फिर रहे हैं ! तो इस दशा को मिटाना हम लोगों के लिए आवश्यक है जिसमें लगता है कि हम उससे बिछुड़ गए हैं | उस रस स्वरुप परमात्मा से हम बिछुड़ गए हैं, यह सत्य नहीं है | यह केवल भ्रम है, क्योंकि बिछुड़ जाते तो हमारी सत्ता ही नहीं होती | वह जो हमारा उद्गम है, Generation of life है, उससे एक क्षण के लिए भी सम्बन्ध टूट जाय तो हमारी सत्ता ख़त्म हो जाती, अस्तित्व ही नहीं रहता | तो किसी भी काल में सम्बन्ध टूटा नहीं है और न कभी टूटेगा | वह टूटने वाला है ही नहीं | द्रश्य से जो सम्बन्ध जुड़ा हुआ प्रतीत हो रहा है वह भी कोरा भ्रम है |परमात्मा से कभी सम्बन्ध टूटा नहीं, मिटा नहीं, छूटा नहीं, टूटेगा नहीं | वे तो छोड़ते ही नहीं हैं, वे कैसे छोड़ेंगे | स्वामीजी महाराज अपने शानदार व्यक्तित्व (personality) के प्रभाव में आ जाते तो कहते कि परमात्मा की हिम्मत नहीं है कि हमसे सम्बन्ध तोड़ दे और अपनी करूणा कि गोद से निकाल कर हमको फेंक दें | अगर ऐसा कर सकेंगे तो अनंत माधुर्यवान का उनका विशेषण ख़त्म हो जायगा | अनंत माधुर्यवान किसको कहते हैं ? जो केवल अपने स्वभाव से ही पतित से पतित को भी अपनी करूणा से संभाल कर रखता है | हम पतित से पतित हो सकते हैं लेकिन उनके अनंत माधुर्य की जो विशेषता है, उसको वे ख़त्म नहीं करेंगे |
From page 104-105 of book जीवन-विवेचन भाग १ ख, written by Shri Devaki Mataji, foremost disciple of Swami Sharnanandji Maharaj