माता-पिता के ऋण

माता-पिता ने बच्चे के लिये जो कष्ट सहे हैं, उसका पुत्र पर ऋण है। उस ऋण को पुत्र कभी उतार नहीं सकता। माँ ने पुत्र की जितनी सेवा की है, उतनी सेवा पुत्र कर ही नहीं सकता। अगर कोई पुत्र यह कहता है कि मैं अपनी चमड़ी से माँके लिये जूती बना दूँ तो उससे हम पूछते हैं कि यह चमड़ी तुम कहाँ से लाये? यह भी तो माँने ही दी है ! उसी चमड़ी की जूती बनाकर माँको दे दी तो कौन-सा बड़ा काम किया? माँ बच्चे के लिये कितना कष्ट उठाती है, उसको गर्भ में धारण करती है, जन्म देते समय असह्य पीड़ा सहती है, अपना दूध पिलाती है, बड़े लाड़-प्यार से पालन-पोषण करती है, खाना-पिना, उठना-बैठना, चलना-फिरना आदि सिखाती है, ऐसी माँ का ऋण पुत्र चुका नहीं सकता। (आवश्यक शिक्षा-गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशन-कोड-४३५) 
Swami Ramsukhdasji