तुलसीदासजी के वचन :

पाप हरे , परिताप हरे , तनु पूजि भो हीतल सीतलाई!
हंसु कियो बकते , बलि जाऊं , कहाँ लौं कहौं करुना -अधिकाई !!
कालु बिलोकि कहे तुलसी , मनमें प्रभुकी परतीति अघाई !
जनमु जहाँ , तहां रावरे सो निबहै भरि देह सनेह -सगाई

तुलसीदासजी कहते हैं - हे श्रीराम आपने मेरे पाप नष्ट कर दिए , सारे संताप हर लिए , शरीर पूज्य बन गया , हृदय में शीतलता आ गयी और मैं आपकी बलिहारी जाता हूँ , आपने मुझे बगुले (दम्भी ) से हंस विवेक (विवेकी) बना दिया , आपकी कृपा का कहाँ तक वर्णन करूँ! अब समय देखकर तुलसी कहता है कि मेरे मन में
प्रभु का पूरा भरोसा है , अतः जहाँ कहीं भी मेरा जन्म हो वहाँ आपसे शरीर रहने तक प्रेम के सम्बन्ध का निर्वाह होता रहे !
गोस्वामी तुलसीदास
जय श्री सीताराम