संकट से पहले भगवान की कृपा....


Photo: संकट से पहले भगवान की कृपा 
आ जाती है....

सुन्दरकाण्ड का उस समय का प्रसंग है जब हनुमान जी सीता जी की खोज में लंका जाते है 
और अशोक वाटिका में उसी वृक्ष में ऊपर बैठ जाते है 
जिस वृक्ष के नीचे सीता जी बैठी हुई थी.

फिर रावण आता है.
और सीता जी को डरता है, धमकाता है.

और सीता जी रोती बिलखती है. 

सीता जी उस समय सामने खड़े रावण रूपी संकट को तो देखती है परन्तु ऊपर हनुमान जी रूपी भगवान की कृपा को नहीं देख पाती.

हनुमानजी रावण के आने से पहले ही अशोक वाटिका में पहुच गए थे,

अर्थात भगवान संकट आने से पहले ही कृपा पहले भेज देते है. 

इसी तरह हम भी करते है,
जब हमारे ऊपर संकट आता है तो हम सामने खड़े संकट को ही देखते है और डरते रहते है.

हमारी सोच, बुद्धि इस तरफ नहीं जाती कि भगवान कि कृपा हमारे ऊपर पहले से ही है.
हम से ज्यादा भगवान को हमारी चिंता है. 

आगे फिर सीता जी हनुमान जी से कहती है कि भगवान मुझे भूल गए है,
उनसे कहना जब इंद्र के पुत्र जयंत ने मेरे चरण में चोच मारी थी तब आपने एक तिनके को संधान करने छोड़ा था,
और उस बाण ने तीनो लोको में कही भी जयंत को नहीं छोड़ा था,
अब तो रावण मुझे हर के ले आया है,
उसने इतना बड़ा अपराध किया है,
अब वे उसेदंड क्यों नहीं देते?

इस पर हनुमाना जी बोले - 
माता! उस समय तो  उन्होंने एक छोटा सा बाण छोड़ा था अब तो हनुमान नामा का बाण छोड़ा है और जगत को पता है श्री राम चन्द्र जी का बाण कभी निष्फल नहीं होता....
सुन्दरकाण्ड का उस समय का प्रसंग है जब हनुमान जी सीता जी की खोज में लंका जाते है
और अशोक वाटिका में उसी वृक्ष में ऊपर बैठ जाते है
जिस वृक्ष के नीचे सीता जी बैठी हुई थी.


फिर रावण आता है.
और सीता जी को डरता है, धमकाता है.

और सीता जी रोती बिलखती है.
सीता जी उस समय सामने खड़े रावण रूपी संकट को तो देखती है परन्तु ऊपर हनुमान जी रूपी भगवान की कृपा को नहीं देख पाती.

हनुमानजी रावण के आने से पहले ही अशोक वाटिका में पहुच गए थे,
अर्थात भगवान संकट आने से पहले ही कृपा पहले भेज देते है.

इसी तरह हम भी करते है,
जब हमारे ऊपर संकट आता है तो हम सामने खड़े संकट को ही देखते है और डरते रहते है.

हमारी सोच, बुद्धि इस तरफ नहीं जाती कि भगवान कि कृपा हमारे ऊपर पहले से ही है.
हम से ज्यादा भगवान को हमारी चिंता है.

आगे फिर सीता जी हनुमान जी से कहती है कि भगवान मुझे भूल गए है,
उनसे कहना जब इंद्र के पुत्र जयंत ने मेरे चरण में चोच मारी थी तब आपने एक तिनके को संधान करने छोड़ा था,
और उस बाण ने तीनो लोको में कही भी जयंत को नहीं छोड़ा था,
 
अब तो रावण मुझे हर के ले आया है,
उसने इतना बड़ा अपराध किया है,
अब वे उसेदंड क्यों नहीं देते?

इस पर हनुमाना जी बोले -
माता! उस समय तो उन्होंने एक छोटा सा बाण छोड़ा था अब तो हनुमान नामा का बाण छोड़ा है और जगत को पता है श्री राम चन्द्र जी का बाण कभी निष्फल नहीं होता....