क्रोध ही राक्षस है...


एक बार श्रीकृष्ण, बलराम और सात्यकि एक घने जंगल में पहुंचे। वहां रात हो गई, 
इसलिए तीनों ने जंगल में ही रात बिताने का निर्णय लिया ।

जंगल बहुत घना और खतरनाक था ।
उसमें अनेक हिंसक जानवर रहते थे। इसलिए तय किया गया कि सब मिल कर बारी- बारी से पहरा देंगे ।

सबसे पहले सात्यकि की बारी आई,
रात के पहले पहर में वे जग कर निगरानी करने लगे ।

श्रीकृष्ण और बलराम सोने चले गए ।
उसी समय एक भयानक राक्षस आया और सात्यकि पर आक्रमण कर दिया ।
सात्यकि बहुत बलवान थे ।
राक्षस के आक्रमण से उन्हें बड़ा गुस्सा आया ।

क्रोध में आ कर उन्होंने भी पूरे बल के साथ उस राक्षस पर आक्रमण कर दिया ।
मगर सात्यकि को जितना अधिक क्रोध आता,
उस राक्षस का आकार उतना ही बड़ा हो जाता ।

कुछ देर के बाद राक्षस अदृश्य हो गया ।

दूसरे पहर में श्रीबलराम पहरा देने उठे ।
जब श्रीकृष्ण और सात्यकि सो गए तो श्रीबलराम के साथ भी वैसा ही हुआ, जैसा सात्यकि के साथ हुआ था ।

तीसरे पहर में श्रीकृष्ण पहरा दे रहे थे ।
राक्षस फिर आया। श्रीकृष्ण हंसते-हंसते उसका मुकाबला करने लगे।

उन्हें उस पर क्रोध नहीं आया ।
राक्षस जितनी बार आक्रमण करता, श्रीकृष्ण उतनी बार मुस्कराते और उसके हमले का जवाब देते ।

फिर आश्चर्यजनक बात हुई ।

श्रीकृष्ण जितना मुस्कराते, राक्षस का आकार उतना ही छोटा हो जाता ।

धीरे- धीरे वह छोटा होकर मच्छर के बराबर हो गया । श्रीकृष्ण ने उसे पकड़ कर अपने दुपट्टे में बांध लिया ।

सुबह हुई तो श्रीबलराम और सात्यकि को घायल देखकर श्रीकृष्ण ने पूछा,
यह सब कैसे हुआ। तुम दोनों तो बहुत शक्तिशाली हो, तुम्हें किसने घायल कर दिया ?

दोनों ने रात की घटना बताई ।

श्रीकृष्ण ने दुपट्टे को खोल कर वह मच्छर दिखाते हुए कहा, यह रहा तुम्हारा राक्षस ।

सत्य यह है कि क्रोध ही राक्षस है ।
जितना क्रोध करोगे, राक्षस उतना ही शक्तिशाली होता जाएगा और तुम्हें नुकसान पहुंचाएगा ।
असल में अपने आप में राक्षस कुछ नहीं है ।........