दशहरे की परम्परा भगवान राम द्वारा त्रेतायुग में रावण के
वध से भले ही आरम्भ हुई हो, पर द्वापरयुग में महाभारत का प्रसिद्ध युद्ध
भी इसी दिन आरम्भ हुआ था। पर विजयदशमी सिर्फ इस बात का प्रतीक नहीं है कि
अन्याय पर न्याय अथवा बुराई पर अच्छाई की विजय हुई थी बल्कि यह बुराई में
भी अच्छाई ढूँढ़ने का दिन होता है। !!!۞!!!
दशहरा पर्व भारतीय संस्कृति में सबसे ज्यादा बेसब्री के साथ इंतजार किये
जाने वाला त्यौहार है। दशहरा शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा के शब्द
संयोजन "दश" व "हरा" से हुयी है, जिसका अर्थ भगवान राम द्वारा रावण के दस
सिरों को काटने व तत्पश्चात रावण की मृत्यु रूप में राक्षस राज के आंतक की
समाप्ति से है। यही कारण है कि इस दिन को विजयदशमी अर्थात अन्याय पर
न्याय की विजय के रूप में भी मनाया जाता है। दशहरे से पूर्व हर वर्ष
शारदीय नवरात्र के समय मातृरूपिणी देवी नवधान्य सहित पृथ्वी पर अवतरित
होती हैं- क्रमशः शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा,
स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी व सिद्धिदात्री रूप में माँ
दुर्गा की लगातार नौ दिनांे तक पूजा होती है। ऐसी मान्यता है कि नवरात्र
के अंतिम दिन भगवान राम ने चंडी पूजा के रूप में माँ दुर्गा की उपासना की
थी और माँ ने उन्हें युद्ध में विजय का आशीर्वाद दिया था। इसके अगले ही
दिन दशमी को भगवान राम ने रावण का अंत कर उस पर विजय पायी, तभी से शारदीय
नवरात्र के बाद दशमी को विजयदशमी के रूप में मनाया जाता है और आज भी
प्रतीकात्मक रूप में रावण-पुतला का दहन कर अन्याय पर न्याय के विजय की
उद्घोषणा की जाती हे । !!!۞!!!
!!!۞!!! ॥ॐ श्री राम ॥ !!!۞!!!
!!!۞!!! ॐ नम: शिवाय !!!۞!!!
!!!۞!!! ॥ॐ श्री हनुमते नमः ॥ !!!۞!!!