हनुमान प्रसाद पोद्दार "भाईजी" के धेर्य ने आखिर चोर को नेक बना ही दिया ।


उस समय गीता प्रेस गोरखपुर के संपादक हनुमान प्रसाद पोद्दार "भाईजी" थे ।

वे किसी कार्य से कलकत्ता गए ।

लौटते समय एक किशोर उनसे भीख मांगने लगा ।

उसने भूखे होने का हवाला दिया, तो हनुमान प्रसाद पोद्दार "भाईजी" को दया आ गई ।

उन्होंने कुछ रुपए उसे दिए और शेष बचे रुपए जेब में रख लिए ।

जब वे कुछ आगेबढ़े, तो उन्हें लगा कि कोई उनकी जेब छू रहा है ।

उन्होंने तत्काल उस हाथ को पकड़ा और देखाकि यह तो वही किशोर है । किशोर डर से कांपने लगा,
किंतु हनुमान प्रसाद पोद्दार "भाईजी" ने उससे कहा कि तुम्हें और रुपए चाहिए थे, तो पहले ही मांग लेते।
यह कहते हुए उन्होंने बाकी रुपए भी उसे दे दिए।

फिर उसे समझाया कि भूखा कहकर जेब काटने से लोगों का विश्वास भूखों पर से उठ जाएगा ।

हनुमान प्रसाद पोद्दार "भाईजी" के इस दयालु व्यवहार से किशोर को ग्लानि हुई ।

उसने अपने घर की दयनीय दशा के बारे में बताया और काम देने की प्रार्थना की ।

हनुमान प्रसाद पोद्दार "भाईजी" उसे अपने साथ गोरखपुर ले आए और काम पर रख लिया ।

 उसकी आदत के विषय में उन्होंने किसी को नहीं बताया ।

 कुछ दिन बाद किशोर ने अपने किसी साथी के रुपए चुरा लिए। चोरी का पता लगने पर सभी की तलाशी ली जाने   लगी ।

 हनुमान प्रसाद पोद्दार "भाईजी" समझ गए कि यह काम उसी किशोर का है ।

उन्होंने उसकी तलाशी लेने के पहले ही उसे वहां से कोई काम देकररवाना कर दिया ।

 वह हनुमान प्रसाद पोद्दार "भाईजी" की महानता देखकर बहुत शर्मसार हुआ और उसने उनसे क्षमा मांगी ।

 इस प्रकार हनुमान प्रसाद पोद्दार "भाईजी" की विशाल हृदयता ने किशोर को सदा के लिए नेक बना दिया ।